सिर्फ एक एक खबर को ठीक से पढ़ें। विषय विवादित है इसलिए बहुत कुछ नहीं कह सकते और जान निर्दोष जवानों की गई है इसलिये हत्या को परिभाषित नहीं किया जा सकता है लेकिन इतना जरूर है कि कभी सुप्रीम कोर्ट ने ही कहा था कि आदिवासियों की जमीनें हड़पने के कारण आदिवासी बन रहे हैं नक्सली। अब जानना यह है कि सुप्रीम कोर्ट अपने उस बयान पर कायम है या 10 लाख आदिवासियों को बेघर व बेदखल करने वाले बयान के साथ है?
आदिवासी इलाकों में जमीन के अंदर विकराल खजाने भरे पड़े हैं। हीरा, सोना, तांबा, जस्ता जाने क्या क्या भू-सम्पदायें हैं और फिर सुंदर जमीनों पर नेताओं और उधोगपतियों के फार्म हाउस से लेकर उधोगधन्धे लगाने तक के लिए मिट्टी के भाव जमीनें और कहां मिलेगी? नक्सलियों ने बम और बन्दूक का रास्ता चुना है जो पूर्णतः गलत है, पर उनके पीछे और क्या बचा है तथा बंदूकें हासिल कैसे हुई इसपर ग्राउंड रिपोर्ट की आवश्यकता है।
भारत में केवल आदिवासी ही एकमात्र समुदाय है जो तेजी से सिमटते जा रहे हैं उनकी सुध कोई भी सरकारें नहीं लेना चाहती और वे लेंगी भी क्यों? यूएनओ में एकबार कहा गया था कि यदि आदिवासी दुनिया से विलुप्त हुए तो यह दुनिया थम जायेगी। जल, जंगल और जमीन आदिवासियों को बदौलत आबाद है इसलिए सर्वप्रथम हमें यह समझना होगा कि आदिवासियों की जनसंख्या कितनी बाक़ी है और जमीनें कितनी बची है। जिन्होंने यह सब छीना है उनसे जवानों की शहादत सहित हर तरह की भरपाई का समय है।
आर पी विशाल (लेखक सोशल एक्टिविस्ट है)