-23 जुलाई, 2014 को तत्कालीन केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजू ने राज्यसभा में क्यों कहा था कि ‘सरकार ने नेशनल रजिस्टर ऑफ इंडियन सिटिज़न्स बनाने का फ़ैसला किया है और यह एनपीआर के डेटा के आधार पर किया जाएगा?’
-अगर छह साल से सरकार बार बार दोहरा रही है कि एनआरसी हमारी प्राथमिकता है तो प्रधानमंत्री ने क्यों कहा कि कभी चर्चा ही नहीं हुई?
-गृहमंत्री ने चार दिन पहले तक बार बार क्यों दोहराया कि पहले कैब आएगा, फिर एनआरसी आएगा?
-गृह मंत्रालय के अधिकारियों ने राज्यों में डिटेंशन सेंटर बनवाने का आदेश किसके कहने पर जारी किया था?
-क्या गृहमंत्री और उनके अधिकारी प्रधानमंत्री को बताए बिना काम कर रहे हैं? क्या गृह मंत्रालय मंत्रिमंडल को अपने कार्यों के बारे में कुछ नहीं बता रहा है?
-अगर सरकार की मंशा सही है तो वह सेंसस एक्ट 1948, नागरिकता क़ानून 1955 और सिटिज़नशिप (रजिस्ट्रेशन ऑफ सिटिज़न्स एंड इश्यू ऑफ नेशनल आइडेंटिटी कार्ड्स) रूल्स, 2003 को एक ही क्यों कह रही है?
-2010 के एनपीआर में 15 पॉइंट्स का डेटा संग्रह किया गया था. इसे बढ़ाया क्यों गया? इसमें माता-पिता की जन्मतिथि और जन्मस्थान के अलावा पिछले निवास स्थान की जानकारी क्यों मांगी जा रही है?
-सरकार ने पहले हर सवाल से इनकार किया और बार बार झूठ बोला. जब सारे झूठ पकड़े गए तो अब अंतिम तर्क इस पर अटक गया है कि इसे कांग्रेस ने भी आगे बढ़ाया था. क्या कांग्रेस ने भी धर्म के आधार पर छंटनी का प्रावधान किया था?
-2003 का नियम कहता है कि एनपीआर के तहत जो रजिस्टर बनेगा, उसमें ‘अवैध प्रवासियों’ और ‘संदिग्ध नागरिकों’ की पहचान की जाएगी, लेकिन ‘संदिग्ध नागरिक’ कौन है, इसकी परिभाषा क्यों नहीं दी गई?
-‘संदिग्ध नागरिक’ की परिभाषा के बगैर ‘संदिग्ध नागरिक’ कैसे छांटे जाएंगे?
-कौन संदिग्ध होगा, इसे 2003 रूल्स के नियम 4 के मुताबिक, लोकल रजिस्ट्रार तय करेगा, लेकिन कानून में यह नहीं बताया गया है कि इसका आधार क्या होगा? फिर रजिस्ट्रार किन मानकों पर किसी को संदिग्ध मानेगा?
-अगर सरकार वाकई तीन मुस्लिम देशों में अल्पसंख्यकों को लेकर गंभीर है तो कैब से पहले इसका कोई अध्ययन क्यों नहीं कराया गया?
-जो बाहर से आया है, वह प्रताड़ित अल्पसंख्यक समुदाय का है, सरकार इसकी पहचान कैसे करेगी, यह बिल में क्यों नहीं बताया गया?
-अगर कोई आतंकी नाम और पहचान बदलकर हिंदू बनकर आया, ऐसी हालत में सरकार के पास क्या उपाय है?
-सभी राज्यों को कम से कम तीन बार डिटेंशन सेंटर बनवाने का निर्देश किसलिए दिया गया? मंत्रालय स्तर पर सारी तैयारियों के बावजूद, नोटिफिकेशन जारी करने के बावजूद सरकार ने झूठ क्यों बोला कि इसकी तो कोई तैयारी ही नहीं है?
-अगर सरकार की मंशा ठीक है तो वह एनपीआर, एनआरसी और जनगणना तीनों को एक ही क्यों बता रही है, जबकि जनगणना 1948 के कानून के तहत होती है और एनपीआर व एनआरसी एक कानून के तहत हैं?
-अगर सरकार की मंशा सही है तो वह संवैधानिक भावना के विपरीत जाकर धार्मिक आधार पर नागरिकता का प्रावधान क्यों कर रही है?
-सरकार हर दिन नागरिकता कानून के मुद्दे पर विरोधाभासी बयान क्यों दे रही है?
-अगर यह पूरी कवायद घुसपैठियों की पहचान करने तक सीमित है तो सरकार इस मुद्दे को हिंदू बनाम मुसलमान की लड़ाई में क्यों बदल रही है?
-अगर सरकार देशहित में कोई काम कर रही है तो नागरिकों को भरोसे में लेने की जगह अंग्रेजों की तरह क्रूरतापूर्ण दमन क्यों कर रही है?
-सावरकर और गोलवलकर के समय से ही आरएसएस का एजेंडा रहा है कि मुसलमानों को दोयम दर्जे का नागरिक बनकर रहना चाहिए. जब सरकार संसद से लेकर सड़क तक कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे रही है तो कोई यह कैसे मान ले वह अपने उसी पुराने हिंदू राष्ट्र के एजेंडे पर आगे नहीं बढ़ रही है?
-अगर सरकार की नीयत सही है तो प्रधानमंत्री सदन से क्यों गायब रहे और चुनावी रैली में जवाब देने के बहाने झूठ के पहाड़ क्यों खड़े किए?
-सरकार आज तक यह क्यों नहीं बता रही है कि असम में जो 19 लाख लोग छांटे गए हैं, उनका क्या होगा?
-जो वास्तव में भारत के मूल निवासी हैं और एनआरसी में छंट गए, वैसा पूरे भारत में न हो, इसके लिए सरकार ने क्या उपाय किया है?
-असम की एनआरसी लंबे समय में संपन्न हुई थी, कटऑफ़ डेट 1971 थी, एनआरसी सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हुई, फिर भी केंद्र और राज्य सरकार, दोनों ने ही खारिज कर दिया. फिर पूरे देश में इतनी खामियों वाला कानून क्यों लागू किया जा रहा है?
-क्या राजीव गांधी, अटल बिहारी या मनमोहन सिंह सरकार ने भी कभी ऐसा कहा था कि अन्य धर्मों के विदेशी शरणार्थियों को थोक में नागरिकता दी जाए लेकिन मुसलमानों को बाहर रखा जाए? क्या पहले की किसी सरकार ने भारत में धर्म को नागरिकता का आधार बनाया था?