JAMIA फिर लहूलुहान ।। JAMIA ने क्या क्या गलतियां की ? JAMIA सवालों के घेरे में ।।

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JAMIA फिर लहूलुहान ।। JAMIA ने क्या क्या गलतियां की ? JAMIA सवालों के घेरे में ।। 
जामिया के भाईयों
अस्सलाम
आप जिस बहादुरी के साथ वर्तमान सरकार से लड़ रहे है वाकई में यह तारीफ़ के लायक़ है। पूरा भारत आपकी तरफ़ उम्मीद भरी नजरों से देख रहा है। क्योंकि आपने इस आंदोलन को एक गति दिया है। किसी भी लड़ाई को बहादुरी से अधिक चतुराई से जीती जाती है। मुझें लगता है कि आपलोगों से चतुराई दिखाने में थोड़ी चूक हो रही है। अगर ऐसा नहीं होता तब 13 दिसंबर को जब जामिया से संसद मार्च के दौरान पुलिस जिस बर्बरता के साथ पेश हुई थी उसके बाद रणनीति में बदलाव होना चाहिये था। मग़र ऐसा नहीं हुआ। परिणामस्वरूप 15 दिसंबर की बर्बरता सामने आयी। उसके बाद फिर से 30 जनवरी को शादाब को गोली लगती है और दर्जनों छात्र घायल होते है। पुनः 10 फ़रवरी को पुलिस की लाठी चलती है और लड़के घायल होते है।


जामिया के छात्रों से मेरे कुछ सवाल है। 
1. यह जानते हुए की दिल्ली पुलिस का रवैया जामिया के प्रति बिल्कुल भी न्यायपूर्ण नहीं है इसके बावजूद चुनावी माहौल में क्या जामिया से राजघाट तक का पैदल मार्च करना ख़तरे से ख़ाली था? जामिया से राजघाट की दूरी लगभग 10 किमी के आसपास है। इस बीच मे अगर बजरंग दल के हथियारबंद आतंकी झुण्ड में आकर छात्रों के ऊपर अटैक करते तब उनके सुरक्षा की जिम्मेदारी कौन लेता? ऐसा हुआ भी मार्च अभी जामिया से होली फैमिली भी नहीं पहुँची थी कि एक आतंकी हवा में गोली लहराने लगा और शादाब के साथ जो हुआ उससे हम सभी लोग अवगत है। 


2. 10 फरवरी को संसद घेराव करने का आह्वान किया गया था। जब आह्वान संसद घेराव का था तब यह जामिया से संसद मार्च करने का मूर्खतापूर्ण आईडिया कैसे आगया जब्कि पूर्व में ही 13 दिसंबर, 15 दिसंबर और 30 जनवरी के खून के धब्बे अभी मिटे भी नहीं थे? क्या आपको इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि दिल्ली पुलिस, भाजपा सरकार और कट्टर हिंदूवादी संगठन जामिया के विरुद्ध खड़े है? साथ-साथ जामिया से संसद भवन की दूरी लगभग 8 किमी है। इस 8 किमी में छात्रों की सुरक्षा की गारंटी कौन लेगा? आज फिर वही हुआ कि अभी आप होली फैमिली भी नहीं पहुँचे थे कि पुलिस की लाठियाँ चलनी शुरू हो गयी और दर्जनों छात्र घायल होकर हॉस्पिटल पहुँच गये। जब असल ऑब्जेक्टिव संसद भवन का घेराव था तब फोकस उसी पर रखना चाहिये था। झुण्ड में नहीं जाकर बिखरते हुए मंडी हाउस पहुंचना था और फिर एकसाथ संसद भवन का घेराव करना था।


जामिया के छात्रों से एक अपील है। आपलोग शहादत को इतने हल्के में मत लीजिये। शहादत भी वही याद रखी जाती है जिस शहादत में चतुराई है। आपको भाषणों के जरिये भगतसिंह, अशफ़ाक़ुल्ला, बिस्मिल और खुदीराम के शहादतों की कहानी सुनाकर जज़्बात भर दिया गया है। मग़र आपके रणनीति में जज़्बात है मगर चतुराई नहीं है। अगर भगतसिंह शहीद भी हुए तो सेंट्रल हॉल में धमाका करने के बाद शहीद हुए थे। 
मैं इस पत्र के माध्यम से आपके हौसला को कमज़ोर नहीं कर रहा हूँ। बल्कि इस बात की तरफ ध्यान आकर्षित कराना चाहता हूँ कि यह लड़ाई लम्बी है। इतनी लंबी तो जरूर है कि लोकसभा के चुनाव का समय नज़दीक पहुँच जाये। इसलिए आंदोलन के लिए जितनी भीड़ जरूरी है उतनी ही जरूरी भीड़ का सकारात्मक इस्तेमाल है। आप लगातार चार बार संसद भवन और राजघाट पहुँचने की कोशिश कर चुके है। मग़र आप होली फैमिली और जुलेना से आगे नहीं बढ़ सके है। उसके बावजूद उसी टूल को दूसरी बार इस्तेमाल करना बहादुरी नहीं मूर्खता है। गाँधी भी एक के बाद विरोध का दूसरा टूल प्रयोग करते थे। हम अपने इस लड़ाई के प्रत्येक पहलू को अंग्रेज़ों के विरुद्ध स्वतंत्रता की लड़ाई से जोड़कर नहीं देख सकते है। उस समय के भारत मे और आज के भारत मे बहुत फ़र्क़ है। उस समय गुजरात का हिन्दू और चम्पारण का मुसलमान भी एक प्लेटफॉर्म पर था मगर आज आपका पड़ोसी भी आपके साथ नहीं खड़ा है। जितना जरूरी शांतिपूर्ण प्रदर्शन होता है उतना ही जरूरी शांतिपूर्ण तऱीके से बच निकलने की रणनीति भी होती है। क्योंकि सरकार हमेशा विरोध को दबाने के लिए हिंसा का इस्तेमाल करती है। यह अंग्रेज़ों के समय रॉलेट एक्ट के विरोध के बाद जलियांवाला बाग कांड रहा हो या जेपी आंदोलन के समय इंदिरा गाँधी के द्वारा बल प्रयोग या फिर अन्ना आंदोलन में रामलीला की घटना या वर्तमान में जामिया, अलीगढ़ और JNU की बर्बरता सभी मे सरकार ने हिंसा किया है। मुझें तो यही लगता है कि यह सब जानते हुए भी आप मार्च करने के नाम पर खुद को हिंसक लोगों के ख़ुराक़ बन रहे है।
लाठी ख़ाकर और गिरफ्तारी देकर युवा नेता बनने का एक नया चलन पैदा हुआ है। लेकिन मैं लाठी खाने और गिरफ्तारी देने के बिल्कुल ख़िलाफ़ में हूँ। लाठी और गोली बहुत आख़िरी हद होता है। आप(जामिया) इस आंदोलन के नेता है और अगर आप गिरफ्तार या शहीद होते है तब रणनीति कौन बनायेगा? इसलिए यह कोशिश हमेशा होनी चाहिये कि रणनीतिकार सुरक्षित रहे। अब जामिया तो इस आंदोलन का रणनीतिकार है।
तारिक़ अनवर चम्पारणी
पूर्व छात्र, जामिया मिल्लिया इस्लामिया

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