Do you know ? जिस्म की भूख, प्राकृतिक भूख है या मानसिक?

SD24 News Network –

Do you know ।। जिस्म की भूख, प्राकृतिक भूख है या मानसिक

Do you know ? जिस्म की भूख, प्राकृतिक भूख है या मानसिक?

देखो काजल, मैं अभी बीमार हूँ। मेरे लिए तुम्हारा शरीर संगमरमर से तराशा हुआ महल मात्र है। जिसे मैं केवल देख और महसूस कर सकता हूं। लेकिन अभी के लिए कोई उम्मीद नहीं है।”
कबीर के ये शब्द काजल के दिल की धड़कन को बिगाड़ने के लिए काफी थे। कुछ पल की चुप्पी के बाद उन्होंने अपना मुंह खोला, “कबीर, तुम बीमार हो, तो इसमें मेरा क्या दोष है? मुझे अभी भूख लगी है। ………… जैसे पेट को भूख लगती है, कबीर, शरीर को भी भूख लगती है। वैसे तो पेट की भूख को बुझाने के कई तरीके हैं। लेकिन शरीर ……… ”।
इसे शरीर की भूख कहें या वासना का ज्वार।
सतही भावनाओं को प्रेम कहना उचित नहीं है।
जलते हुए आदमी की बदबू से हवा भारी है,
फिर भी मौसम को सुहाना कहने की जिद है।
शरीर की भूख स्वाभाविक और शाश्वत है। यही सृष्टि की रचना का मूल है। लेकिन जब यह भूख दिमाग पर हावी हो जाती है तो मानसिक हो जाती है। और यह आज के पर्यावरण के लिए जिम्मेदार है।
इसे शरीर की भूख कहें या वासना का ज्वार।
सतही भावनाओं को प्रेम कहना उचित नहीं है।
जलते हुए आदमी की बदबू से हवा भारी है,
फिर भी मौसम को सुहाना कहने की जिद है।
शरीर की भूख स्वाभाविक और शाश्वत है। यही सृष्टि की रचना का मूल है। लेकिन जब यह भूख दिमाग पर हावी हो जाती है तो मानसिक हो जाती है। और यह आज के पर्यावरण के लिए जिम्मेदार है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *