Delhi में मुसलमान हारा जरूर, लेकिन इस्लाम जीत गया Proud Islam

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दिल्ली में मुसलमान हारा जरूर है
लेकिन इस्लाम जीत गया
क्यूकी हमारी 4 मस्जिदें, 2 दरगाह, 1 मदरसा सहित 85 वर्षीय अकबरी
और 9 माह बच्ची सहित उसकी माँ को जला दिया लेकिन मंदिर नहीं ज़ला
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नई दिल्ली – हम मुसलमान है इसलिए हमें फक्र है । क्यूंकि हम दूसरों के धर्मस्थलों और ग्रंथों का सम्मान करते है हमें कुरआन और हमारे नबी मुहम्मद (स. सल्लम) ने यही आदेश दिया है । यही वजह है की बाबरी विध्वंस के बाद भी मुसलमानों ने किसी भी छोटे बड़े मंदिर की तरफ ऊँगली तक नहीं उठाई । अगर सांप्रदायिक तत्वों को लगता है की, दिल्ली में मस्जिद जलाकर, मीनार पर भगवा टांग दिया तो वह जीत गए । बिलकुल नहीं यही तो तुम्हारी हार का सबूत है भक्तो । 
गौरतलब हो की, यह हरकत लोकतंत्र के मुह पर तमाचा है । देश यह याद रखेगा के, मुख्यमंत्री केजरीवाल, गृहमंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी थे जब यह सब दिल्ली में हुआ। और यह हारकर हिन्दु०मुसल्मानो की बिच एक बड़ी दरार की साजिश थी लेकिन वह भी नाकाम हुई उपरोक्त तस्वीर से आप अंदाजा लगा सकते है जिसमे, शाहबाज़ और विकास दिल्ली के दंगों में अपने दोस्त रोहित सोलंकी की मौत पर गले लग कर रोते देखे गए… हिंसा के दौरान सोलंकी की गर्दन में गोली लगी थी… हिँसा पर दोस्ती हावी हो गई ।

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मैं हैरान हूँ CAA/NRC/NPR का विरोध करने वालों की लड़ाई तो केंद्र सरकार से थी। जिसमें पूरे भारत से सभी राज्यों और सभी समाजो के लोगों के द्वारा किया जा रहा था।
फिर ये लड़ाई हिन्दू बनाम मुसलमान कैसे हो गयी?
दंगाई आतंकवादी मस्जिद और मज़ार में आग लगा रहे धर्म की किताब को जला रहे, मस्ज़िद के मीनार पर चढ़कर अपने धर्म का झंडा लहरा रहे, मुसलमानों के घर और दुकानों को टारगेट कर कर के जला रहे, दाढ़ी कुर्ते वालों को पीट रहे महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों तक को भी नही छोड़ा गया … ये सब कैसे हुआ??
सरकार से लड़ाई धर्म की लड़ाई कैसे बन गयी? देश की राजधानी में मुस्लिम विरोधी नफरत का ये माहौल किसने बनाया ? और देश की राजधानी में इतना बड़ा दंगा लम्बे समय तक कैसे चलता है जहां पर देश की सभी सुरक्षा एजेंसियों की चप्पे-चप्पे पर पैनी नज़र होती है। आप जरा कल्पना कीजिये जब देश की राजधानी में आम नागरिकों की जान-माल सुरक्षित नही है तो फिर अन्य जगहों का क्या हाल होगा

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