BJP औऱ Congress का बदलता रूप: राज्यसभा चुनाव

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BJP औऱ CONGRESS का बदलता रूप: राज्यसभा चुनाव
राज्य सभा के लिए राजस्थान में कांग्रेस और बीजेपी, दोनों ने दो-दो प्रत्याशी मैदान में खड़े किए है और मुकाबले को रोचक बना दिया है। ये अप्रत्यक्ष विधि से चुनी जाने वाली सीटें है और सामान्य स्थिति रहती तो एक-एक सीट दोनों को मिल सकती थी। परंतु अब वह स्थिति नहीं रहने की। वरीयता में द्वितीयक पसंद के उम्मीदवार के बारे में अभी निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता है। बीजेपी ने दोनों सीटों पर प्रत्याशी उतार कर न केवल चुनाव को चुनैतिपूर्ण बना दिया है बल्कि कांग्रेस की राजनीति को घेर लिया है।

कम होते जनाधार को अप्रत्यक्ष रूप से साधने के लिए इस बार कांग्रेस ने दो में से एक टिकट नीरज डांगी ( मेघवाल अनुसूचित जाति में शुमार एक जाति)को दिया है, जो मोहनलाल सुखाड़िया के मंत्रिमंडल से हरिदेव जोशी आदि के मंत्रिमंडल में मंत्री रहे दिनेश राय डांगी के पुत्र है और जालोर से बीजेपी से सांसद रहे हुकमराम मेघवाल के भतीजे है। दिनेशराय डांगी अपने समय के अनुसूचित जाति के व कांग्रेस के प्रभावी नेता थे। वे राजस्थान में कांग्रेस के अनुसूचित जाति प्रकोष्ठ के अध्यक्ष भी रहे। वे न केवल अनुसूचित जाति के कांग्रेसी संगठन के दमदार नेता रहे, बल्कि कांग्रेस के संगठन में भी खासी दखल रखते थे। दिनेशराय डांगी के बाद कांग्रेस का अनुसूचित जाति संगठन खत्म-सा हो गया और आपातकाल व उसके बाद से मेघवाल जाति कांग्रेस से दूर होती गई, परंतु कॉंग्रेस ने उसकी कोई परवाह नहीं की तो दूसरी पार्टियों ने उन्हें तव्वजो देना शुरु कर दिया। इस लिहाज से यह टिकट अनुसूचित जाति पर डोरे डालने के समान ही लेना चाहिए।

जिस प्रकार से यूपी और अन्य जगहों पर चमार और महाराष्ट्र में महार आदि सर्वाधिक है उसी प्रकार से राजस्थान में अनुसूचित जातियों में ‘ मेघवाल’ जाति सर्वाधिक है और प्रत्यक्ष चुनावों में वह हार जीत में निर्णायक कही जा सकती है, इसलिए नीरज डांगी के मार्फत कांग्रेस वापस उस जनाधार को पाने की जुगाड़ में लगी दिखती है। परंतु राज्यसभा में तो अप्रत्यक्ष चुनाव होने है और पार्टियां अपना विप जारी करती है। ऐसे में संख्याबल पर वह किसी भी ऐरे-गैरे को जीता सकती है, इस में ‘आरक्षण’ भी नहीं है, तो कांग्रेस ने नीरज डांगी को दूसरी सीट के लिए मैदान में क्यों उतारा?

ये चुनाव वरीयता से होने है। वोटों का अंतरण बा-मुश्किल है और प्रायः वरीयता भी विप से बता दी जाती है। अगर पहली वरीयता में वेणुगोपाल कांग्रेस के जीत जाते है तो दूसरा भी जीत जाए यह तय नहीं कहा जा सकता है, लेकिन पार्टी यह कहती है कि दूसरा भी जीतेगा। यह सब खेल बाड़े बंधी का होने जा रहा है। इसके न केवल राजनीतिक अर्थ है, बल्कि सामाजिक अर्थ भी है।
अगर नीरज डांगी नहीं जीत पाता है तो कांग्रेस औऱ ज्यादा नंगा होगी और बीजेपी उसको फील्ड में एनकेश करेगी। हालांकि नीरज डांगी की दावेदारी के सामने इंदौरा की दावेदारी भी रखी गयी थी, लेकिन वह कांग्रेस की चिर-परिचित अनुसूचित जातियों में फूट-डालो और वोट लो की नीति का ही हिस्सा है। दोनों अलग-अलग अनुसूचित जातियों के व्यक्ति है। इसलिए यह शिगूफा छोड़ा गया था और यह इसके परिणाम के बाद के बचाव का भी शिगूफा हो सकता है। योग्यता या दूसरा कोई पैमाना नहीं है। इसे गहलोत-पॉयलट टसल कहना वास्तविकता को जनता की समझ से ओझल करने का एक तुरुप है।

नीरज डांगी की हार जीत का राजनैतिक प्रभाव पड़े बिना नहीं रह सकेगा। अब यह कांग्रेस की मजबूरी है कि वह उसे भी जिताये उधर बीजेपी ने ओबीसी के राजेन्द्र गहलोत के साथ ही लखावत को खड़ा कर के खुद के लिए तो चुनौती खड़ी की या नहीं की, यह कहना अभी जल्द बाजी होंगी, परंतु कांग्रेस के लिए चुनौती जरूर खड़ी कर दी है।

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