SD24 News Network -विश्व पर्यावरण दिवस ।। लियो टॉलस्टॉय ।। और हम World Environment Day .. Leo Tolstoy. And what about us
_Azad Singh
महान रूसी दार्शनिक और लेखक लियो टॉलस्टॉय ने कहा था,” खुश रहने की पहली शर्त यह है कि आदमी और प्रकृति के बीच की कड़ी टूटनी नही चाहिए।”
और अगर आज वो कड़ी टूट रही है तो मानवता को उसकी कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही हैं। पिछले एक महीने में हमें जिस चीज की कमी सर्वाधिक खली वह था ऑक्सीजन।
आइए हम उन दिनों एवं घंटों के बारे में सोचें जो हमने अपने प्रियजनों के लिए ऑक्सीजन खोजने में बर्बाद किए। अस्पतालों की ऑक्सीजन की टंकियां खाली होने के कारण कई मरीजों की जानें चली गईं। हालात यहां तक पहुंच गए कि देशभर के उद्योगों से ऑक्सीजन के परिवहन को विनियमित करने के लिए अदालतों को संज्ञान लेना पड़ा।
हमने लोगों को एक-एक सांस के लिए तरसते देखा है और हम इसकी कीमत का अनुभव कर चुके हैं। लेकिन सरकारों के लिए पर्यावरण संरक्षण महज औपचारिकता से ज्यादा कुछ नही हैं। चाहे वो 2019 में मुम्बई के आरे जंगलो की कटाई का मसला हो या लक्ष्यदीप के मूल स्वरूप को बरबाद करने की योजना हो ।
अभी प्रकृति की इतनी मार झेलने के बाद भी मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड के छतरपुर जिले में स्थित बक्सवाहा के जंगल को हीरा खनन के लिए एक निजी कंपनी को सौंपे जाने की चल रही तैयारी हो रही है। कभी बुंदेलखंड जल, जंगल के मामले में समृद्ध हुआ करता था।
वक्त की मार ने इस इलाके को हरियाली को तो ग्रहण लगाया ही, जल स्रोतों को भी दफन करने में हिचक नहीं दिखाई। यह सिलसिला निरंतर जारी है और अब जो इस इलाके का जो भी हिस्सा हरा भरा बचा है, उसे भी तबाह करने की पटकथा लिखी जा रही है।
हीरा उत्खनन के लिए जंगल को लीज पर दिए जाने की प्रक्रिया जारी है, तो वही इसका विरोध भी शुरू हो गया है. संभवत बुंदेलखंड में यह पहला मौका है जब पर्यावरण के प्रति जनचेतना नजर आ रही है।इसकी वजह भी है क्योंकि कोरोना काल ने लोगों को ऑक्सीजन के महत्व को बताया दिया है।इस बीमारी के मरीजों की जीवन रक्षा के लिए सबसे जरूरी ऑक्सीजन को ही माना गया है और ऑक्सीजन इन्हीं पेड़ों से उत्सर्जित होती है।
यह बात लोगों के मन मस्तिष्क में बैठ गई है। बक्सवाहा के जंगल की रक्षा के लिए सिर्फ बुंदेलखंड ही नहीं देश के अनेक हिस्सों से आवाजें उठ रही हैं । जिस कंपनी ने हीरे खनन का काम लेने में दिलचस्पी दिखाई है, वह इस इलाके की लगभग 382 हेक्टेयर जमीन की मांग कर रही है।ऐसा अगर होता है तो इस इलाके के लगभग सवा दो लाख वृक्षों की कटाई तय मानी जा रही है।
सोशल मीडिया पर लगातार वीडियो वायरल हो रहे हैं और वे सरकार को यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि पेड़ हमारे लिए कितनी जरूरी है। लेकिन सरकार को केवल मुनाफ़े की चिंता है ,प्रकृति और पर्यावरण अभी भी मूढ़ सरकारों के सोच से बाहर की विषयवस्तु है। हर वर्ष संयुक्त राष्ट्र संघ एक विशेष अभियान को चुनकर एक कार्ययोजना संचालित करता हैं।
इस वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस 2021 की थीम ‘पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली (Ecosystem Restoration)’ है। जंगलों को नया जीवन देकर, पेड़-पौधे लगाकर, बारिश के पानी को संरक्षित करके और तालाबों के निर्माण करने से हम पारिस्थितिकी तंत्र को फिर से रिस्टोर कर सकते हैं। हालिया घटना क्रमो पर ध्यान दे तो पूरा विश्व एक अदृश्य वायरस के चपेट में है,और करोड़ो की संख्या में जनहानि हुई।
और मेरा मानना है कि यह वायरस प्रकृति से छेड़छाड़ का ही नतीजा है। प्राकृति मानव जीवन के हर पहलू को प्रभावित करती है। स्वच्छ हवा और पानी,पौष्टिक खाद्य पदार्थ,वैज्ञानिक समझ, दवा स्रोत, प्राकृतिक रोग प्रतिरोधक क्षमता और जलवायु परिवर्तन शमन प्रदान करता है। वनों की कटाई और वन्यजीवों के आवासों पर अतिक्रमण और जलवायु परिवर्तन जैसे मानवीय क्रिया कलापो ने प्रकृति को उसकी सीमा पर धकेल दिया है।
इंसानों की मांग इतनी ज्यादा है कि उसको पूरा करने के लिये प्रकृति को 1.6 पृथ्वी की जरूरत पड़ेगी । हम सबको प्रकृति को उसका मूल वापस लौटना होगा।
यही मानव प्रजाति को पृथ्वी के अंत तक जीवन के अनुकूल होगा।