SD24 News Network – MODI-YOGI मुलाकातों के पीछे की राजनीति का बड़ा खुलासा
उत्तर प्रदेश चुनाव जीतने के लिए इस बार भी भाजपा में अजीब सी बेचैनी है।दिल्ली से लेकर लखनऊ तक और संघ से लेकर केंद्रीय नेतृत्व तक अब आत्ममंथन के मूड में दिख रहा है.सभी भयभीत हैं कि कहीं वे इस महत्वपूर्ण चुनाव को हार न जाएं.2024 के लोकसभा चुनाव की भी चिंता अभी से शुरू हो गई है.
जिसके तहत संघ यह सुझाव दे रहा है कि आगामी विधानसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी के चेहरे का इस्तेमाल नहीं किया जाए या कम सामने लाया जाए.इस तरह का फ़ैसला पश्चिम बंगाल में हए विधानसभा के चुनाव को ध्यान में रखकर तो किया ही गया है उत्तर प्रदेश में हार की संभावना के पूर्वाभास की वजह से भी किया गया है. 250 विधायक योगी आदित्यनाथ के काम-काज से नाराज़ हैं फिर भी योगी के चेहरे पर ही चुनाव लड़ा जाएगा ऐसा भाजपा और संघ दोनों का मानना है.गृह मंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाक़ात के बाद सबकुछ पटरी पर दिख तो रहा है लेकिन मंत्रिमंडल के विस्तार को लेकर अभी तक कोई स्पष्टता नज़र नहीं आ रही है.
यह सबको पता है कि किसान आन्दोलन,बेरोज़गारी और कोविड कुप्रबंधन का असर चुनाव पर रहेगा इसीलिए यह आशंका और बढ़ गई है कि भाजपा सांप्रदायिकता का खेल न खेले.
विधानसभा चुनाव से पहले जैसे सरेआम अलग-अलग जातियों को साधने की कोशिश की जा रही है उससे तो यही लग रहा है कि भाजपा का हिंदुत्व फेल हो चुका है.पंचायत चुनावों के परिणाम इस ओर साफ़तौर पर संकेत दे चुके हैं कि भाजपा ने जो गैर यादव और गैर जाटव का कुनबा जोड़ा था वह बिखर गया है.
पिछड़ी जातियों को और गैर ठाकुर सवर्णों को ख़ासकर ब्राह्मणों को उत्तर प्रदेश में नज़रंदाज़ किया गया जिसकी वज़ह से तमाम विधायक असंतुष्ट थे.फेक एनकाउंटर अपने आप में बुरी चीज है लेकिन इसमें भी जाति और धर्म देखकर फैसले लिए गए.बगैर प्रतिक्रिया की चिंता किए एक वर्ग इस तरह के एनकाउंटर को एन्जॉय करता रहा जैसे हमेशा के लिए सत्ता उसके हाथ में आ गई हो! भाजपा को यह सोचने का मौका ही नहीं मिला कि इससे समाज में किस तरह का असंतोष फैलेगा!
2017 के विधानसभा चुनाव में पिछड़ों के दम पर ही भाजपा सत्ता में आई थी. लेकिन सत्ता में आते ही केशव प्रसाद मौर्य की जगह मनोज सिन्हा को मुख्यमंत्री बनाने की बात की गई और अंततः पैराशूट कंडीडेट योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बना दिया गया. मुसलमानों से घृणा करने वाला व्यक्ति खुलेआम जातिवादी मानसिकता का परिचय देने लगा.हिंदुत्व भी एक जुमला है योगी आदित्यनाथ इस बात को साबित कर चुके हैं.इसका छोटा सा नमूना वे सत्ता में आते ही पेश किए-
अखिलेश यादव के बंगले का शुद्धिकरण कराया गया और केशव प्रसाद मौर्य के नेमप्लेट को उखड़वाकर कूड़ेदान में फेंक दिया गया.दूसरा केशव प्रसाद मौर्य को केवल चार मंत्रालय दिया गया जबकि योगी आदित्यनाथ अपने लिए 36 विभाग सुरक्षित रख लिए.यह भी सत्य है कि अलग-अलग दलों को जिनके साथ गठबंधन होता है उन्हें कोई मंत्रालय और लाल बत्ती देकर उनका मान बढाने की पुरानी परम्परा है जिसे योगी आदित्यनाथ ने तोड़ा है.यह भी असंतोष का बड़ा कारण है.
जितिन प्रसाद का भाजपा में शामिल होना ब्राह्मणों को शांत करने के लिए जवाबी कदम के रूप में देखा जा रहा है.क्या ब्राह्मण या भूमिहार जाति इतनी भोली-भाली है कि वह पूर्व नौकरशाह एके शर्मा और पूर्व कांग्रेसी जितिन प्रसाद की वजह से संतुष्ट हो जाएगी? मेरा मत है कि अंदरखाने में बिखराव है फिर भी वोटर को दिखाने-लुभाने के लिए यह सब किया जा रहा है.इन लोगों का प्रभाव व्यापक जनता पर नहीं पड़ेगा.
आपको याद होगा कि 2017 विधानसभा चुनाव से ठीक पहले नोटबंदी की गई थी। जनता बैंकों के सामने लाईन में अपनी बारी का इंतजार कर रही थी और भाजपा नेताओं की गाड़ियों से 2000₹ के नये नोट के बंडल पकड़े जा रहे थे। लाइन में लगे-लगे कुछ लोग मर गए। अस्पतालों में समय से भुगतान न कर पाने की वजह से भी कुछ लोगों की जान चली गई। नोटबंदी इसलिए की गई थी ताकि विपक्ष के पैसे को पानी बनाया जा सके। लेकिन आपसे कहा गया कि काला धन आएगा.नक्सलियों की कमर टूट जाएगी.फिर डिजिटल पेमेंट की बात कर आपके गुस्से को शांत कर दिया गया.आज अर्थव्यवस्था की जो हालत है उसके पीछे कोविड महामारी का हाथ तो है ही नोटबंदी का सबसे बड़ा हाथ है. नोटबंदी का असर पिछले विधानसभा चुनाव पर कुछ यूँ पड़ा कि अखिलेश यादव और मायावती चुनाव से पहले ही मैदान से बाहर कर दिए गए और मोदी लहर पर सवार होकर योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंच गए, लेकिन सत्ता में आने के बाद ऐसा उन्होंने कुछ नहीं किया जिसकी सराहना की जा सके।
वे सिर्फ़ मोदी की तारीफ़ को ही अपना परम कर्त्तव्य समझते रहे.काम के नाम पर केवल नाम बदला गया और धार्मिक आयोजनों में जनता के टैक्स का पैसा उड़ाया गया.रास्ट्रीय रोजगार पकौड़ा तलना तो था ही इसलिए रोजगार के लिए अलग से सोचने की कोई ज़रूरत नहीं समझी गई.इस बार के चुनाव में संघ की लाख कोशिशों के बावजूद प्रधानमंत्री की कुनीतियों को ध्यान में रखकर भी जनता वोट करेगी.अगर उन्हें यह ग़लतफ़हमी है कि वे योगी आदित्यनाथ पर हार की जिम्मेदारी डालकर खुद को लोकसभा के लिए बचा लेंगे तो यह उनका भ्रम है.
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कुछ लोगों का मानना है कि व्यक्तिगत तौर पर योगी आदित्यनाथ के ऊपर भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं है। हमें यह समझना चाहिए कि इस तरह की बातें छवि निर्माण के लिए की जाती हैं। अजीत डोभाल राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हैं। ऐसे जरूरी पद पर बैठे व्यक्ति से यह अपेक्षा की जाती है कि वह गैरकानूनी काम नहीं करेगा,लेकिन उनके बेटों की फर्जी कंपनियां हैं।अमित शाह के लड़के के बारे में आपको पता ही होगा कि कैसे अचानक उनकी सम्पत्ति बढ़ गई! तो अलग-अलग संस्थाओं के जरिए उत्तर प्रदेश में खूब भ्रष्टाचार हो रहा है। कुछ लोग तो कहते हैं कि नया रेट पुराने से भी ज्यादा है. इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि योगी आदित्यनाथ भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कोई प्रभावी कदम उठा पाए।
मुसलमानों और दलितों का इस सरकार में दमन बढ़ा है.मोब लिंचिंग और बलात्कार जैसी घटनाओं पर चुप्पी या मौन समर्थन से भी जनता आक्रोशित है.
इस महामारी में अधिकांश लोगों को यह अहसाह हुआ है कि लचर स्वास्थ्य व्यवस्था और कुप्रबंधन की वजह से ही गंगा में लाशें तैरती दिखीं और रेत में हजारों लोगों को दफनाना पड़ा. सैकड़ों शव रास्तों के किनारे पड़े रहे.उन्हें चिता के लिए जगह मिलने और अपनी बारी आने का इन्तज़ार था. गिद्ध और कुत्तों ने लाशों को नोंचा. मृत्यु के बाद भी देह का अपमान हुआ.संघ प्रमुख मोहन भागवत ने तो यहाँ तक कह दिया कि कोविड से मरने वालों को मोक्ष प्राप्त होगा.यह कितनी हृदयविदारक बात है!
-विवेक मिश्र
Cuando intenta espiar el teléfono de alguien, debe asegurarse de que no encuentren el software una vez que esté instalado.
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