एक बार फिर दो मुस्लिम युवाओं की जिंदगी तबाह । आरोप साबित नही कर पाई पुलिस । जिसे चाहा उठा लिया जेल में ठूंस दिया । दो चार दस साल सड़ाया फिर छोड़ दिया ।
मुसलमानों के साथ ऐसा ही कई सालों से होता आया है । भला हो अदालतों का देर से क्यों ना हो इंसाफ तो मिल रहा है । लेकिन अफसोस इस बात का है कि, जेल में ठूंसे गए बेगुनाहों की जिंदगियां तबाह हो रही है ।
पिछले कुछ सालों में हमारे देश की अदालतों ने सैकड़ो मुसलमानों को आरोप साबित ना होने के चलते बाइज्जत रिहा किया ।
कोई 20 साल बाद रिहा हुआ, कोई 15 साल बाद, कोई दो चार साल बाद तो की जवानी में जेल गया और बुढ़ापे में रिहा हुआ ।
ऐसा ही एक मामला दिल्ली दंगो का है । राजधानी दिल्ली में बीते दो साल पहले हुए सांप्रदायिक दंगों के आरोप में गिरफ़्तार दो मुस्लिमों को कोर्ट ने बाइज़्ज़त बरी कर दिया।
कड़कड़डूमा कोर्ट ने शाहरुख और ज़ुबैर को सभी आरोपों से बरी करते हुए कहा कि, पुलिस इन के खिलाफ दर्ज़ किसी भी मामले में आरोप साबित नहीं कर पाई हैं।
दिल्ली पुलिस ने इनके खिलाफ आईपीएस की धारा 147, 148, 149, 427 और 436 के तहत एफआईआर दर्ज़ की थीं, लेकिन एक भी धारा में पुलिस आरोप साबित नहीं कर सकीं।
आपको बता दें कि, इन का मुकदमा जमीयत उलेमा ए हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी के वकील सलीम मलिक लड़ रहें थे।
सलीम मलिक का कहना हैं कि, “दिल्ली पुलिस ने दंगों के आरोप में बेकसूर लोगों को गिरफ्तार किया था तथा उनपर बेबुनियाद आरोप लगाएं थे, लेकिन हमें अदालत से इंसाफ़ मिल रहा हैं।”
दिल्ली दंगों के बाद पुलिस पर कार्यवाही करने का दबाव था इसलिए पुलिस को जो भी मिला उन्होंने उसे ही दंगाई बता कर गिरफ्तार कर लिया. इन लोगों पर बहुत सारे मुकदमे दर्ज़ किए गए मगर पुलिस ज्यादातर मामलों में आरोपी साबित करने में पूरी तरह से नाकामयाब रही।
शाहरुख और ज़ुबैर की रिहाई पर मौलाना महमूद मदनी ने खुशी का इज़हार करते हुए कहा कि, पुलिस ने भले ही झूठे मुकदमे दर्ज किए हो लेकिन हमें अदालत पर पूरा भरोसा हैं. दिल्ली दंगा के मामले में हम कई बेकसूर लोगों को कोर्ट के ज़रिए रिहा करवा चुके हैं बाकि बचे हुए बेकसूर लोगों को भी जल्द रिहा करवाया जाएगा।