टाइम्स ऑफ इंडिया में कुछ साल पहले एक अंग्रेज़ी खातून का लेख छपा था,जिसमे उन्होंने अपने दिल्ली-टूर का तजुर्बा बयान किया था.
टीशर्ट और बरमूडा पहले वो अंग्रेज़ खातून दिल्ली की तंग गलियों में घूमने निकली थीं.उनके मुताबिक ज़्यादातर नज़रें उन्हें घूर रही थी,उनपर भद्दे इशारेबाजी और कमेंटबाजी हो रही थी और कोई कोई तो उनसे टकराने और छूने की कोशिश में भी था.
फिर उनके मन मे जाने क्या समाई कि उन्होंने उसी बाज़ार की एक दुकान से बुर्क़ा खरीदकर पहन लिया. फिर तो मानो सारा सीन ही बदल गया था.वापिस उन्ही रास्तो के वही लोग अब उनपर एक नज़र के बाद दूसरी नज़र न डाल रहे थे,न कोई टकराने छेड़ने या कोई कमेंटबाजी कर रहे थें,बल्कि बाइज़्ज़त रास्ता दे रहे थें..!
उन्होंने आखिर में बताया कि,” यक़ीनन ‘पर्दा’ जो डबल ज़ेड प्लस वाली सुरक्षा एक औरत को देता है, वो दुनिया की बड़ी से बड़ी ताकत भी नही दे सकती..!”
#worldhijabday
अपनी बहन को नही बचा पाए आसाराम के गुर्गों से
वही बेबकूफ ज्ञान पेल रहे बुर्के पे
बेलाल ख़ान जौनपुरी
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