लखनऊ, 2 अक्तूबर 2019। रिहाई मंच ने अमित शाह द्वारा पश्चिम बंगाल में एनआरसी के सम्बंध में दिए गए बयान को विभाजनकारी करार दिया। सरकार द्वारा एनआरसी से पहले संसद में विधेयक लाने जिसके तहत एनआरसी में नाम न आने के बावजूद किसी हिंदू, ईसाई या बौद्ध को नागरिकता दी जाएगी ऐसा कहना मुस्लिम विरोधी जेहनियत का नतीजा है।
रिहाई मंच अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि पड़ोसी देशों में अल्पसंख्यकों को धार्मिक शोषण से बचाने के नाम पर देश के अल्पसंख्यक मुसलमानों को प्रताड़ित करने और उन्हें दोयम दर्जे का नागरिक बनाने का यह संघी षणयंत्र है। यह खुला रहस्य है जिसे संघ और भाजपा नेताओं के प्रतिदिन आने वाले मुस्लिम विरोधी बयानों में भी देखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि असम में एनआरसी में वंचित रह जाने वालों में संघ–भाजपा की आशाओं के विपरीत हिंदुओं की संख्या अधिक होने के कारण उसकी साम्प्रदायिक राजनीति को झटका लगा। बांग्लादेशी नागरिकों की असम में घुसपैठ के मुद्दे को लेकर लम्बे हिंसक आंदोलन के बाद एनआरसी करने का निर्णय लिया गया था। लेकिन असमिया समूहों के विरोध के बावजूद सरकार नागरिकता संशोधन विधेयक लाने पर जिद बांधे हुए है। दरअसल नागरिकता संशोधन विधेयक कुछ और नहीं बल्कि उसी साम्प्रदायिक और संकीर्ण राजीनीति को खाद पानी देने की कवायद है।
रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि उत्तर प्रदेश के डीजीपी ने जनपदों के एसएसपी⁄एसपी को राज्य में रेलवे स्टेशनों, बस अड्डों और सड़़कों के किनारे अवैध रूप से रह रहे विदेशी⁄बंगलादेशी नागरिकों को चिन्हित कर उनका सत्यापन कराकर विधि सम्मत कार्यवाही करने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने सवाल किया कि क्या पुलिस इस तरह का अभिायान चलाने में सक्षम है? उन्होंने कहा कि वाहन चेकिंग के नाम पर प्रदेश की पुलिस द्वारा अवैध वसूली और वाहन स्वामियों के साथ मारपीट करने की घटनाएं आशंका उत्पन्न करती हैं कि गरीब बांग्लाभाषी असमिया मज़दूरों को इस नाम पर पुलिसिया उत्पीड़न का शिकार बनाया जा सकता है। बहुत सारा मज़दूर वर्ग अपने साथ अपनी नागरिकता का प्रमाण लेकर दूसरे राज्यों में मेहनत-मज़दूरी करने नहीं जाता है। उन्होंने कहा कि जिस तरह से मीडिया ने डीजीपी के दिशा निर्देश को एनआरसी बताने का प्रोपेगंडा किया और केंद्र व राज्य की भाजपा सरकारें अपनी विफलताओं को छुपाने के लिए नागरिकता के मुद्दे का साम्प्रदायीकरण कर रही हैं उससे पुलिस के उच्चतम अधिकारी की मंशा संदिग्ध हो जाती है।
रिहाई मंच महासचिव ने कहा कि उत्तर प्रदेश के डीजीपी का यह बयान तथ्यों से परे है जिसमें उन्होंने कहा है कि राज्य में योगी शासनकाल में कोई दंगा नहीं हुआ। इसी तरह का बयान स्वंय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी दे चुके हैं। लेकिन फरवरी 2018 में गृहमंत्रालय द्वारा संसद में साम्प्रदायिक दंगों के जो आंकड़े पेश किए गए थे उनके मुताबिक 2017 में देश में कुल 822 दंगे हुए थे जिसमें उत्तर प्रदेश 195 साम्प्रदायिक दंगों के साथ सूची में सबसे ऊपर था। इन दंगों में 44 लोगों की मौत हुई थी और करीब 542 लोग घायल हुए थे। उन्होंने कहा कि तथ्यों के विपरीत जाकर डीजीपी स्तर के पुलिस अधिकारी द्वारा इस तरह का दावा झूठ की राजनीति से प्रेरित है।
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