क्या समाज के एक विशाल तबके को वंचित करके हमारा देश तरक़्क़ी कर सकता है ?

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दिल्ली में राज्यपालों के सम्मेलन में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू, एवं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि सभी राज्यपाल आदिवासियों एवं समाज के वंचितों के लियें मिलकर काम करें, आपका ये विचार सराहनीय है किन्तु क्या कभी देश के ज़िम्मेदार और सम्मानित पद पर बैठे हुए आप महानुभावों ने ये मंथन करने की कोशिश की है कि आज के समय में देश में सबसे ज़्यादा वंचित और पिछड़ा हुआ कौन है ? अगर नहीं की तो तथ्यों के आधार पर आपको बता दें कि आज देश के अंदर सबसे ज़्यादा पिछड़ा हुआ, वंचित, और आर्थिक आधार पर टूटा हुआ कोई है तो वो है 
भारत का अल्पसंख्यक मुस्लिम वर्ग, जिसके पास सरकारी नौकरियों के नाम पर ऊँट के मुँह में ज़ीरा है, कारोबार के नाम पर रिक्शा चलाने, मज़दूरी करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है, और पैसा तो उसके पास रात को आये सपने की तरह होता है जो कभी पूरा नहीं होता। और ये सारी बातें सिर्फ़ मुँह ज़ुबानी नहीं हैं बाकायदा इसके साक्ष्य मौजूद हैं, नवम्बर *2006* में जस्टिस *राजेंद्र सच्चर कमेटी* की रिपोर्ट, मई *2007* में *रंगनाथ मिश्र आयोग* की रिपोर्टें ये चीख़ चीख़ कर कह रही थीं कि मुसलमानों की आर्थिक स्थिति आज देश के अंदर दलितों से भी बदतर है उनके पास शिक्षा, कारोबार, नौकरियाँ नगण्य हैं मुसलमान बस मज़दूरी करके किसी तरह अपना पेट भर रहा है, 

लेकिन इन दोनों ही रिपोर्टों को तब की वर्तमान सरकार एवं आज तक की आयी सभी सरकारों ने ठंडे बस्ते में डाल दिया और मुसलमानों के बिगड़े आर्थिक हालात को संभालने की कोई कोशिश नहीं की, सन *2014* में एक और आयोग *अमिताभ कुंडू आयोग* ने सच्चर कमेटी एवं रंगनाथ मिश्र आयोग की रिपोर्टों की जाँच पड़ताल करके फिर से इन रिपोर्टों पर मुहर लागई कि वास्तव में आज देश के अंदर अल्पसंख्यक मुसलमानों की आर्थिक स्थिति बेहद दयनीय है और देश की सरकारों को इस पिछड़े एवं वंचित मुस्लिम समाज को समाज की मुख्य धारा में लाने के लियें आरक्षण देने के साथ साथ बड़ी बड़ी योजनाएं बनानी चाहियें डाइवर्सिटी कमीशन बनाकर मुस्लिम समाज के उत्थान के लियें काम करना चाहिए, एवं मुस्लिम समाज को भी दलितों की तरह अनुसूचित जाति जनजाति अत्यचार निवारण कानून 1989 के दायरे में लाया जाना चाहिए। 
देश के इतने बड़े बड़े तीन आयोग चीख़ चीख़ कर कह रहे हैं कि भारत के एक वर्ग विशेष की स्थिति बेहद दयनीय है लेकिन किसी सरकार के कानों पर आज तक इस विषय में जूं नहीं रेंगी, अब सवाल ये है कि समाज के किसी भी एक वर्ग या एक तबके को नज़रअंदाज़ करके, उसे उसके अधिकारों से वंचित करके क्या हमारे देश का विकास हो सकता है ? क्या एक वर्ग विशेष के साथ नाइंसाफ़ी करके हम दुनिया में विकासशील देश कहला सकते हैं ? क्या अल्पसंख्यक मुस्लिम समाज को प्रताड़ित करके हम सबके साथ, सबके विकास की कल्पना कर सकते हैं ? 

ये एक बहुत बड़ा एवं गंभीर सवाल आज देश की सरकारों के सामने है कि किस तरह से देश के एक विशाल वंचित एवं पिछड़े तबके को समाज की मुख्य धारा में लाया जाये एवं यही सवाल उस वंचित एवं पिछड़े अल्पसंख्यक मुस्लिम समाज के लियें भी है कि किस तरह अपनी आर्थिक स्थिति एवं अधिकारों के प्रति जागरूक होकर अपना हक़ हासिल करें।।
*लेखक – राशिद मुरादाबादी*

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