SD24 News Network
मीडिया को एक विलेन की ज़रूरत थी। कपिल का सरनेम सूट नहीं कर रहा था। बहुत लोग मारे जा चुके हैं। इसलिए विलेन तो चाहिए ही। ताहिर से काम चला रही है मीडिया। मीडिया की मजबूरी समझिए। विलेन शर्मा हो तो कितना बुरा लगता है।
जैसे, प्रकाश झा को विलेन के लिए यादव सरनेम पसंद है। जबकि बिहार में कोई यादव डॉन नहीं है। लेकिन जिन सरनेम वाले असली डॉन हैं, उनका नाम फिल्म में कैसे रखें। मजबूरी समझिए।
Dilip c Mandal j
दंगों की साईकोलोजी :—-
एक होता है नरैटिव बनाना के दंगों में हिन्दू मुसलमान दोनों का नुकसान होता है , हिन्दू भी मरे इनके नाम को हाई लाइट करना ताकी दंगों पर रोक लगे । ताकि हिन्दू कम्युनिटी जो भारत में दंगों की मुख्य अभिकर्ता है उस पर एक मनोवैज्ञानिक दबाव रहे थोड़ा डर उत्पन्न हो और वह दंगों से बचें । पर ऐसा करते समय मुसलमानों की मौत को भी बराबरी से दिखाया जाना चाहिए ताकि दूसरी तरफ़ उनका चित्त भी शांत हो ।
पर जब मीडिया हिन्दूओं की मौत को ही सिर्फ़ दिखाने लगे तो यह भावना भड़काने वाली बात हुई जिससे दंगा और भड़क सकता है । वैसे भी इस दंगे में ख़ून के छीटे मिडिया के ऊपर ही हैं , देल्ही इलेक्शन में जो नफ़रत मिडिया ने फैलाई यह मौतें उसी का परिणाम है ।
अभी की हालात पर जैसा अभी मिडिया का बर्ताव है सिर्फ़ अंकित और रतन पर ज़ोर है,यह अहम हो जाता है के आप हिन्दू मुस्लिम भाईचारा का बाजा बजाने की बजाये खुल कर सिर्फ़ मुस्लिमों की मौत को हाईलाइट करें ताकि मिडिया द्वारा दंगा भड़काने को फेल किया जा सके । मुस्लिम मौत को ज़्यादा दिखाने से विराट हिन्दू हिर्दय संतुष्ट हो जाएगा और ‘काम हो गया अब और ज़रूरत नहीं है’ ऐसा भाव उत्पन्न होगा।
मिडिया अगर सिर्फ़ मुस्लिम मौत दिखाती तो हिन्दू मौत को आगे किया जाना चाहिए होता है ताकि दंगाइयों पर से खौफ़ बिलकुल हट जाए ऐसा भी नहीं हो पाये । मुस्लिमों को भाईचारा का पाठ पढ़ाने का कोई मतलब ही नहीं हैं,क्योंकि वह दंगा चाहता ही नहीं है वह लालू यादव को वोट ही इसी लिए देता रहा है क्योंकि वह दंगा होने नहीं देता था ।
दंगा सीधे सीधे हिन्दू मनोविज्ञान से जुड़ा है । हिन्दू को संभाल लिया तो भारत में दंगे नहीं होंगे । चूँकि दंगों में इंसानों की जान जाती है इसलिए नरैटिव बहुत सोच समझ के बनाने की ज़रूरत होती है ताकि दंगा को रोका जा सके और इंसानी जानों को बचाया जा सके।i