“दिल्ली वाली शाहिनों को सलाम करना चाहता हूँ “
दिल्लीयों कि शाहिनों को तहे दिलसे सलाम करना चाहता हूँ ,रात कि ठंड मे,सुलझती धूप मे तन बदन को तडपा-तडपा के हक्क अधिकार पाने के लिए भूखी-प्यासी धरने पर बैठी हुई उन शाहिनों को सलाम करना चाहता हूँ!
उनके जसबे को देख के,नफरत के खिलाफ दिलो मे प्यार भर-भर के,गुंगी-बेहरी सरकार को,अंधे – काले कानून को हटवाने बैठी हूई उन शाहिनों को सलाम करना चाहता हूँ!
एक मां ने तो आपने मासूम बच्ची कि कूरबानी देते हुए,सिसकती ठंड मे रोते हुए, आपनी आने वाली नसले बचाने के लिए,नंगे पांव चलते हुए दिल के कलेजे को दफना कर फिर उसी जगह धरने पर बैठकर के,आपनी आवाज बुलंद करके,फिर उसका मुसकुराना,हां उस मां को सलाम करना चाहता हूँ!
आपनी आंखो मे तेल डालकर, बिना दांतो के वतन फर्सती के गीत बोलकर ,संविधान की किताब हाथ मे थामे हूए,जय हिंद का गीत गाते हुए नौ जवानो की भी शरम सार करके उनका हौसला देख कर के,उन दादीयों को सलाम करना चाहता हूँ!
जात-धर्म की लढाई करने वाली, देश विरोधी गती-विधी चलाने वाली सरकार से सवाल पूंछ-पूंछ कर,संविधान की दुहाई देते हुए, बिना डरे हुए बैठी हूई उन शाहिनों को सलाम करना चाहता हूँ!
उन शाहिनों के लिए, बच्चो बुजुर्गों के लिए दिन रात आग के सामने,उस चुल्हे के सामने आपना खून जलाने वाले उन सिख भाईयॉँ को सलाम करना चाहता हूँ!
जार जार हो चूकी है आंखे उन शाहिनों को देख कर,बेहरी हो गई है मेरी काने जामीया-जे एन यु की चिखे सुन-सुन कर, उन जामीया-जे एन यु के हौसलों को सलाम करना चाहता हूँ!
दिल्ली मे आग लगा कर,दिलो मे नफरत फैलाकर, मसजीद पर झंडा लहराकर तुम मुसकुराए घरो मे बैठकर, पर उसी मसजीद की मिनार से,पर उसी मसजीद की मिनार से,उस हिंदू भाई को झंडा उतारता देख कर, मेरा मन ही मन मे मुसकुराना,दिल्ली की आग बुझती देख कर,उन दिल्ली वालों को सलाम करना चाहता हूँ!
जिसने रात के अंधेरे मे,इंसानियत को तडपता देखकर,आपने अधिकारों का इस्तेमाल कर कर के, उन इंसानो को बचाने वाले जज मुरलीधर को सलाम करना चाहता हूँ!
मेरी दिल्ली वाली शाहिनों को सलाम करना चाहता हूँ!
-एड. नितीन सोनकांबळे, नांदेड