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होलिका अगर बुरी थी तो पूजा क्यों ? अच्छी थी तो जलाई क्यों ?
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प्रश्न वही कर सकता है जो जानता है या जानना चाहता है। सदियों तक देश की आधी से अधिक जनता को शिक्षा से वंचित रखा गया। जब उसने शिक्षा प्राप्त की है, जाना है तो प्रश्न तो अवश्य उठाएगा। प्रश्न से इतना घबराते क्यों है? कोई प्रश्न पूछता है तो आप जवाब देने के बजाय काउंटर ना करें ।
“होलिका बलिदान दिवस”
ऐ होलिका मां तू पूजी भी जा रही हैं और जलाई भी जा रही हैं. आखिर क्यों ? होलिका बुरी थी तो गुजिया, पुरी कचौरी और जल पिलाकर तथा पैर छूकर आदि तरह से पूजा क्यों की जाती हैं ? होलिका अच्छी थी तो 5-7 कंडे (उपले ) ही क्यों ? 1 या 10 क्यों नहीं ? फिर फेरे 3 ही क्यों 5-7 क्यों नहीं ? जय हो जय हो करके जलाते क्यों हो ? अगर फसल तैयार होने की खुशी मे मनाते हो तो आग मे बेजर (जो) तथा गेहूं जलाते क्यों हो ? तो फिर फसल का त्योहार नहीं हो सकता। और यहा गन्ना का महत्व समझ नहीं आया ।जबकि गन्ना मार्च से 2 महा पहले ही चूसने व रस निकालने के लिए तैयार हो जाता हैं । गन्ना की आवश्यकता होली पर ही क्यों ? रंग व गुलाल तो कोई फसल नहीं है । फिर होली से इन रंगों का सम्बंध क्यों हैं ? होली से माग भी करते हो हे होलिका मां हमारे परिवार पर खुशाली बनाये रखना क्यों ?
होली जलाने के बाद दारू जुआ अफीम भाग चरस आदि नशीली चीजो, मुर्गा, बकरा, मछली काटकर खाना तथा कपडा फाडना, कीचड फैकना, नाली मे गिरा देना, मुह पर कालिक पोतना, गले मे जूतो की माला पहनकर गधे पर बैठना या रिकसा पर बैठकर बारात निकालना और जोर जोर से चिल्ला कर सोर करना होली ये ही हैं ? गंदी तथा भद्दी गालियों का प्रयोग करना । इन सब लुच्चा पन का होली से क्या सम्बंध हैं ?
कई इतिहासकारों का मानना है की, होलिका एक वहादुर निडर शाहसी महान विरंगना थी जिसने अपने परिवार के साथ मनुवादियों का डटकर मुकाबला किया और वीरगति को प्राप्त हुई । मूलनिवासियों की हार को एक त्यौहार के रूप में मनुवादियों ने जश्न बना दिया । नादान भारतीय जनसमूह हुडदंग मचाने मे लगा हैं ।
-सौ० दिनेश रत्न बौद्ध शाक्य महान दल मैनपुरी उत्तर प्रदेश भारत