Congress से पूछो दो सवाल सात पीढियां नहीं दे पाएगी जवाब, पता है क्यों ?

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कोसने से या रोना रोने से बेहतर है कि या तो सड़कों पे उतरो या हर छोटे बड़े मुद्दे को कानून के करंट के नीचे लाओ।  Congress से पूछो दो सवाल सात पीढियां नहीं दे पाएगी जवाब, पता है क्यों ? क्यूंकि कांग्रेस भाजपा एक सिक्के के दो पहलु…
कांग्रेस और उनके हित-चिंतकों द्वारा सोशल मीडिया पर या तो बीजेपी के लोगों के, जब वे विपक्ष में थे, उनके वीडियोज शेयर किए जाते है या फिर अपने ही नेताओं की संसद या अन्य जगहों पर हुई ऐसी-तैसी के वीडियोज वायरल किये जाते है। यह एक अलग ही तरह की भक्ति है, जिस से पता लगता है कि उन्होंने अपने को बैल मान या बना लिया है। वर्तमान सरकार के सामने अपने नेताओं की विवशता को दर्शाने वाले वीडियो से उन्हें फायदे की जगह नुकसान होना ही है।

ये लोग अव्वल दर्जे के बाल बुद्धि वाले है। अगर कांग्रेस के इन नेताओं में थोड़ा बहुत भी साहस होता या वे सही होते तो वे दो कार्य कर सकते थे/है: या तो वे सड़कों पर भीड़ लाते और प्रचंड विरोध करते या न्यायपालिका में हर मुद्दे को ले जाते। लेकिन दोनों ही उनकी प्रायोरिटी में नहीं है, मतलब वे डेमोक्रेसी के प्रति गंभीर नहीं है और उदासीन प्रवृति के लोग है, जो यह मानते है कि कोई गांधी आएगा और उन्हें कुर्सी पर बिठा देगा, आखिर कई दशकों तक उन लोगों की धमनियों में नायक पूजा का खून जो दौड़ रहा है।

1. कांग्रेस के पास जनाधार है तो फिर क्यों सड़कों पर नहीं उतरती ?
2. हाईकोर्ट, सुप्रीमकोर्ट और यूनो के दरवाजे खुले है फिर क्यों नहीं खटखटाती ?

जो ज्यादा ही उतावले थे उन्होंने अपना नायक ही बदल लिया और बीजेपी के खेमे में चले गए। बाकी लोग गांधी की लकड़ी पकड़े हुए दौड़ रहे है, जिसमें गांधी गायब है और लकड़ी ढलान में इधर उधर फिसल रही है। वे भी वैसे ही दाएं बाएं हो रहे है। कोसने से या रोना रोने से बेहतर है कि या तो सड़कों पे उतरो या हर छोटे बड़े मुद्दे को कानून के करंट के नीचे लाओ।.
Tararam Gautam
(अगर आपके पास कोई सबूत हो तो हमें भेजे, हमारी जानकारी में इजाफा करे हम उसे भी प्रकाशित करेंगे -संपादक)

‘यूपीए ने ही रखी थी एनआरसी की नींव’
नेशनल आई कार्ड बनाने की प्रक्रिया 2003 में बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए की सरकार के दौरान शुरू हुई थी, उसे कांग्रेस ने आगे बढ़ाया था. मौजूदा सरकार ने कोई नई पहल नहीं की है. इसी कारण कांग्रेस के लिए बड़ी मुश्किल हो गई है. चिदंबरम के भाषण का वीडियो सामने आया है, तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल को पहचान पत्र दिए जाने की बात सामने आ रही है.
सीएए यानी नागरिकता संशोधन क़ानून को लेकर इस आशंका से विरोध शुरू हुआ कि इसके बाद एनआरसी लागू होगी. यह निष्कर्ष निकलना भी ग़लत नहीं था. लेकिन इसके बाद भ्रम फैलाया गया है कि भारतीय मुसमलानों की नागरिकता की समाप्त कर दी जाएगी जो बिल्कुल ग़लत है. जो संशोधन हुआ है, सभी को मालूम है कि तीन देशों के अल्पसंख्यक शरणार्थियों को नागरिकता देने से जुड़ा है.
दूसरी बात यह है कि एनआरसी कब लागू होगी, इस पर चर्चा हो सकती है. लेकिन इस सवाल का कोई अर्थ नहीं है कि एनआरसी लागू होगी या नहीं. क्योंकि इसकी व्यवस्था तो ख़ुद यूपीए सरकार कर चुकी है. उस समय इसका नाम नेशनल रजिस्टर ऑफ़ इंडियन सिटिज़ंस (एनआरआईसी) था. इसलिए एनआरसी को स्वाभाविक तौर पर लागू होना ही है.
कांग्रेस बैकफ़ुट पर इसलिए आती दिख रही है क्योंकि बीजेपी ने अभी जो कुछ किया है, उससे ज़्यादा तो वह ख़ुद कर चुकी है. बीजेपी उसे बस लॉजिकल एंड तक ले जाने की कोशिश कर रही है.
विरोध का जो पूरा आधार कांग्रेस ने खड़ा किया था, उसमें इतने छेद हो गए हैं कि अब उसे मुश्किलें हो रही हैं. अगर एनपीआर को लेकर पहले पार्टी की ओर से बयान आया होता, उसके मेनिफेस्टो में जिक्र होता तो कांग्रेस आसानी से कह सकती थी कि पहले बेशक हमने ऐसा कहा था लेकिन अब हम इसके पक्ष में नहीं हैं.
लेकिन कांग्रेस के नेतत्व वाली यूपीए की जो सरकारें 10 साल रहीं, उसी दौरान यह काम हुआ है. ऐसे में उस दौरान उठाए गए क़दमों से पीछे हटना कांग्रेस के लिए मुश्किल है. अब वह ऐसा नहीं कह सकती कि जो हम कर रहे थे, वह अच्छा था मगर ये सरकार कर ही है तो बुरा है.

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