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79 साल के एक बूढ़े पर अमेरिका की उम्मीदें जिंदा हैं। उन्हें उम्मीद है वह उन्हें इस बार भी बचा लेगा। आखिर वह पिछले 36 सालों से हर बार वायरसों के हमले में अमेरिकियों के लिए सुरक्षा कवच ढूंढता रहा है। यह शख्स इन दिनों कुछ समय टीवी पर नहीं दिखता, तो ट्विटर-फेसबुक पर एक सवाल तैरने लगता है- Where is Dr. Anthony Fauci? डॉक्टर एंथनी फाउची।
कोरोना के साथ यह नाम हर अमेरिकी की जुबान पर है। डॉक्टर फाउची अमेरिका की नैशनल इंस्टिट्यूड ऑफ एलर्जी ऐंड इन्फेक्शस डिजीज के 3 दशकों से मुखिया हैं। वह अमेरिका के छह राष्ट्रपतियों के साथ काम कर चुके हैं। उन्हें दुनिया में वायरस का सबसे बड़ा डॉक्टर माना जाता है। AIDS, anthrax, swine flu, Ebola.. हर बार डॉक्टर फाउची अमेरिका में स्थितियों को संभालने में कामयाब रहे हैं।
लेकिन इस बार फाउची भी समझते हैं कि चुनौती सबसे अलग और बड़ी है। कभी मैराथन धावक रहे फाउची 6 मील दौड़ने का अपना रूटीन तोड़ चुके हैं। रोज करीब 20 से घंटे काम रहे रहे डॉक्टर फाउची इन दिनों अमेरिका के सबसे व्यस्त शख्स हैं। दरअसल अमेरिका इस समय कोरोना के कहर के जिस स्टेज पर जहां पहुंचा है, उससे आगे की तस्वीर बेहद खौफनाक है। इटली जैसी। जो एक दिन में 800 मौतें देख रहा है। जहां मौत का आंकड़ा पांच हजार पहुंचा रहा है। अमेरिका में साढ़े तीन सौ से ज्यादा जानें जा चुकी हैं। करीब 30 हजार लोग इस जानलेवा वायरस की चपेट में हैं। भारत इस समय अमेरिका के ठीक पिछले वाले पायदान पर खड़ा है।
ऐसे मुश्किल समय में डॉक्टर फाउची कोरोना का तोड़ खोजे जाने तक अमेरिकियों को लड़ने का एक मंत्र दे रहे हैं। भारत में गोमूत्र, वजू और जवानी की बेफ्रिकी में जीने वालों को वायरस के इस सबसे एक्सपर्ट की बात सुननी चाहिए। माननी चाहिए। कोरोना की वैक्सीन खोज लिए जाने, उसके करीब पहुंचने या विकल्प मिलने के तमाम दावों के शोर के बीच डॉक्टर फाउची अगले एक से डेढ़ साल में ही कुछ ठोस मिलने की उम्मीद है। वह सबके सामने मलेरिया की दवा को कोरोना का तोड़ बताने के राष्ट्रपति ट्रंप के बेतुके दावे को खारिज कर चुके हैं। फाउची बताते हैं कि फिलहाल कोरोना का एक ही तोड़ है। एकांतवास।
उनके मुताबिक जो समुदाय इस फॉर्म्युले को जितनी गंभीरता से अपनाएगा, वह कोरोना से बचा रहेगा और इसके असर से उतनी ही जल्दी बाहर निकलेगा। उनकी सबसे बड़ी टेंशन वे बेफिक्र युवा हैं, जो समझते हैं कि कोरोना उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। वह मानते हैं कि युवाओं को खतरा बेशक कम है। लेकिन एक कोरोना के एक कैरियर तौर पर वे इन युवाओं को बीमार और बुजुर्गों के लिए सबसे बड़ा खतरा मानते हैं।
अमेरिका की अधिकांश आबादी इन दिनों घरों में कैद है। वहां बेचैनी बढ़ रही है। आखिर कब तक? इन सवालों के साथ ढेरों मेल फाउची के पास पहुंच रहे हैं। बस तीन से चार घंटे की नींद ले पा रहे फाउची को ये मेल्स न पढ़ पाने का अफसोस है। हालांकि उनके पास इस बार इन सवालों का कोई ठोस जवाब भी नहीं है।
चीन और यूरोप का उदाहरण देते हुए वह कहते हैं, ‘अभी तक देखा गया है कि कोरोना वायरस का ग्राफ ऊपर चढ़ता है। पीक पर पहुंचता है। फिर नीचे आता है। चीन को इससे निकले में ढाई महीने का वक्त लगा। अब यूरोप इसका केंद्र है। इटली में यह अपने उफान पर है। वहां अभी कुछ हफ्ते इसके जारी रखने की आशंका है। इसके लौटने की समयसीमा का आकलन करना मुश्किल है।’ कोरोना को लेकर कई अन्य सवाल भी हवा में तैर रहे हैं।