SD24 News Network
कोरोना के बाद भारत में एक और महामारी, मचा हडकंप
अब इनके लिये कोन व्यवस्था करेगा, जो हर रोज जीते हैं, यह कौनसे मकान, घर मे कैद रहेंगे, यह 21 दिन में वैसे ही मर जायेंगे, इनको फुटपाथ से उठाकर कंहा भेजा जायेगा, किस जगह रहेंगे, लाखों की तादाद में बेघर, घुमक्कड़, लोग हैं जो घूमकर या स्टेशन, बस स्टैंड, या कंही फुटपाथ पर, सड़क किनारे, गांव के बाहर, तम्बू या झोपड़ी बनाकर 2,4 दिन रूककर, अगले गांव को जाते है, या एक शहर से दूसरे को, इनको नही पता कि कल कहा सोना हैं, क्या खाना है, अब कोन करेगा 21 दिन में इनकी सार सम्भाल, कौन खाना देगा, आटा देगा, भिक्षा में कपड़े, बर्तन, रोटी, सब्जी, पैसा बोरी, बिस्तर, जनहित के लिए हम 21 दिन लॉक डाउन का तहे दिल से स्वागत करते है लेकिन यह व्यवस्था की जिम्मेदारी भी बनती हैं. कोरोना से नहीं साहब भुखमरी और गरीबी से मरेंगे
दिल्ली, मुंबई में बेबस और लाचार भूखा, प्यासा, भटकता बिहार
किसको दोष दें ? बिहार के मुख्यमंत्री को ? दिल्ली के मुख्यमंत्री को ? हमारे प्रधानमंत्री को ? या फिर इस पूरी सड़ी गली व्यवस्था को जिसको किसी के भी दुःख तकलीफ़ से कोई फर्क नहीं पड़ता ? यह दृश्य देख कर आंख बार – बार छलक जा रही है, पता नहीं क्यों, रोजाना कमाकर खाने वाले दिहाड़ी मजदूर का क्या होगा ? इसपर भी मोदी जी को कुछ सोचना चाहिए था ? थाली और ताली के बजाये भूको को खाना खिलाने का ही बयान दे देते मोदीजी…
21 दिन का लॉकडाउन। मुश्किुल और बड़ा फ़ैसला लेकिन इसके बज़ाए किया भी क्याद जा सकता है? सरकार को भारत जैसे जटिल देश को संभालने और उसे अनुशासित करने का दुरह कार्य करना है। हालांकि आवश्यनक सेवाएं जारी रहेंगी। परेशानी की कोई बात नहीं है। फिरभी….
झुग्गीह-झोंपड़ियों में रहने वालों, मज़दूरों एवं किसानों के लिए 21 दिन बेहद तकलीफदेह होंगे। उनका घर से बाहर निकलना ज़रूरी होता है। पेट उनका पीठ जैसा नहीं। भूख लगती है। हालांकि सरकार आश्वोस्तक कर रही है। अच्छीं बात है। सरकार का सहयोग करना होगा हमें। किन्तु। जिन किसानों की खेतों में फसलें पकी खड़ी हैं। गेहूं, सरसों, जौ और चन्नास। वो घर से बाहर नहीं निकलेगा तो फसल का क्याी होगा? सरकारें किसानों को खेत जाने की तो अनुमति दे। हालांकि खेत घर से भी अधिक सुरक्षित होता है।