जमीन की लड़ाई में आदिवासी औरतों की हत्या आब भी जारी है -Rajni Murmu

जमीन की लड़ाई में आदिवासी औरतों की हत्या आब भी जारी है -Rajni Murmu
SD24 News Network
जमीन की लड़ाई में आदिवासी औरतों की हत्या आब भी जारी है -Rajni Murmu
झारखंड के इतिहास में आदिवासी स्त्रियों के संपत्ति में बराबरी के हक के लिए सर्व प्रथम उरांव आदिवासी महिला #जुलियाना_लकड़ा ने सुप्रीम कोर्ट में 1986 को समानता के मौलिक अधिकार के तहत #छोटानागपुर #टेनेन्सी_एक्ट को चैलेंज करते हुए एक रिट फाइल की ! इस सम्बन्ध में तत्कालीन बिहार सरकार के #bihar_tribal_consultativ_council से कोर्ट से परामर्श मांगा! इस कौन्सिल में उस समय के आदिवासी नेता भी थे ! जिसने जवाब ये दिया कि टेनेन्सी एक्ट आदिवासियों के जमीन की रक्षा कर रहा है अगर इसके साथ छेड़छाड़ कर महिलाओं को जमीन का हक दिया जायेगा तो गैर आदिवासी आदिवासी स्त्रियों के साथ विवाह कर के जमीन हथियाना आरम्भ कर देंगे! दूसरी बात ये कि आदिवासी अभी उस लायक नहीं हैं कि जमीन का लोड लेकर उसकी रक्षा कर पायें!

और इस प्रकार कोर्ट ने जुलियाना लकड़ा की अर्जी खारिज कर दी !
तब आदिवासी महिलाओं को ये समझ आया होगा कि हमारे असली भेदी और दुश्मन तो अपने ही लोग हैं! ये हमें इस लायक ही नहीं समझते कि हम इसकी बराबरी में भी खड़े हो पायें! ये तर्क देते हैं कि आदिवासी कस्टमरी लॉ के तहत भरन पोषण लायक औरतों को जमीन में हिस्सा दिया गया है! लेकिन ये बड़े स्तर पर देखा गया कि ये #भरण_पोषण का हक लेने के लिए भी औरतों को अपने ही भाईयों और नजदीकी रिश्तेदारों से लड़ना पड़ता था ! तलाक शुदा, विधवा आजीवन कुंवारी रहने वाली ,या वो लड़की जो अपने माता-पिता की एकलौती वारिस थी ,को भी भारी संघर्ष करना पड़ रहा था ! जमीन की इस लडाई में औरतों की हत्या तक कर दी जा रही थी ! जबकि कस्टमरी लॉ की दुहाई हर आदिवासी मर्द दे रहा था पर उस लॉ का पालन नहीं हो रहा था ! इसी जमीन की लड़ाई में भाईयों ने अपनी बहनों को डायन कहकर मारना शुरू कर दिया ! इतनी बड़ी संख्या में कि डायन निषेध कानून बनाना पड़ा सरकार को !

जमीन की लड़ाई में औरतों की हत्या आब भी जारी है !
इस बात को लेकर #रोज_केरकेट्टा ने फिर से फिर से अपनी आवाज़ बुलंद की और उसने इस बात की जरूरत महसूस की कि पहले हमें अपने आदिवासी पुरूषों से इस बारे में बात करना चाहिए! तब उसने 1997 में झारखंड के कई बड़े आदिवासी महिला और पुरुष नेताओ, समाजिक कार्यकर्ताओं को विचार विमर्श के लिए रांची में आमंत्रित किया ! जिसमें #रामदयाल_मुंडा भी थे ! सभी पुरुष नेताओ ने एक स्वर में कहा कि स्त्रियाँ जमीन संभालने लायक हैं ही नहीं! इस तरह की बातें निहायत ही आदिवासी विरोधी है! #निर्मला_पुतुल ने इसी मंच से कहा कि हमारा शोषण आदिवासी पुरुष भी कर रहें हैं इसका भी समाधान होना चाहिए! तो उसे जवाब ये दिया गया कि अभी चुप रहो नहीं तो हमारी लड़ाई कमजोर हो जायेगी !

इसप्रकार #बिटिया_मुर्मू ने भी संताल परगना में इस सम्बन्ध में कई-कई मिटिंग की ! अधिकतर जगहों से उसे भी यही जवाब दिया गया कि हम जो आपका शोषण कर रहे हैं उसको आप अभी मत उछालिए क्योंकि हमारा दुश्मन सामने खड़ा है ! उससे लड़ना है अभी !
इस तरह से महिलाओं के दिमाग में ये डाल दिया गया कि उनका अपने हक के लिए खड़े होना आवाज़ उठाना आदिवासी विरोधी है ! अगर ऐसा करते हुए कोई आदिवासी स्त्री नजर आयेगी तो उसे दिकु हितैषी मान लिया जायेगा ! आदिवासी औरतों के शोषण को शोषण तभी माना जायेगा जब शोषक गैर आदिवासी करेगा !

शायद इसी हक की लड़ाई के चलते जैसे उसे डायन घोषित किया गया उसी तरह ये बड़े स्तर पर फैलाया जा रहा है कि आदिवासी स्त्रियों के पास दिमाग कम होता है वो मूर्ख होती है ! मूर्ख होती है इसलिए उसका शोषण कोई भी कर के चला जाता है ! ये वैसी ही बातें हैं जैसे अधिकतर सवर्ण आदिवासियों के बारे में कहते हैं कि ये तो नालायक होते हैं ,मूर्ख होते हैं, इसलिए आरक्षण के भरोसे नौकरी पा लेत हैं ! ये क्या सत्ता सम्भालेंगे?? ऐसा लगता है जैसे ये लोगों को नीच समझने की परम्परा चेन सिस्टम से चल रही हो !!
-Rajni Murmu

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