Ram Navmi : नफरत और सांप्रदायिक हिंसा, बदलता चरित्र

SD24 News Network –

Ram Navmi  नफरत और सांप्रदायिक हिंसा, बदलता चरित्र

Ram Navmi : नफरत और सांप्रदायिक हिंसा, बदलता चरित्र

हालात जैसे के तैसे यूं कहें और ज्यादा बिगड़ चुके है। यह आर्टिकल इतिहासकार डॉ राम पुनियानी द्वारा 2022 में लिखा गया था। 
-राम पुनियानी
हाल (अप्रैल 2022) में देश के अलग-अलग हिस्सों में रामनवमी और हनुमान जयंती पर जो कुछ हुआ वह अत्‍यंत चिंताजनक है. रामनवमी पर गुजरात के खंबात और हिम्‍मत नगर, मध्‍यप्रदेश के खरगोन, कर्नाटक के गुलबर्गा, रायचूर व कोलार, उत्‍तर प्रदेश के सीतापुर और गोवा के इस्‍लामपुरा में हिंसा की बड़ी घटनाएं हुईं. खरगोन की घटना के बाद सरकार ने अल्‍पसंख्‍यक समुदाय के सदस्‍यों की 51 दुकानों और घरों को ढहा दिया. आरोप यह था कि इन स्‍थानों से रामनवमी के जुलूस पर पत्‍थर फेंके गए थे और राज्‍य के गृहमंत्री के अनुसार, इसलिए उन्‍हें पत्‍थरों के ढेर में तब्‍दील कर दिया गया. इस बीच मुसलमानों की आर्थिक रीढ़ तोड़ने का एक नया तरीका सामने आया है. कहा जा रहा है कि मुस्‍लिम व्‍यापारियों को हिन्‍दू मंदिरों के आसपास और धार्मिक मेलों में दुकानें नहीं लगाने दी जाएंगी.
रामनवमी के कुछ ही दिन बाद हनुमान जयंती मनाई गई. इस अवसर पर कई शहरों में जो जुलूस निकाले गए उनमें तेज आवाज़ में संगीत बजाया गया और मुस्‍लिम-विरोधी नारे लगाए गए. जुलूसों में कई लोग हथियारों से लैस भी थे. ये जुलूस मुस्‍लिम-बहुल इलाको में मस्‍जिदों के पास से निकाले गए. भड़काऊ नारे लगे, पत्‍थरबाजी हुई और फिर हिंसा. दिल्‍ली के जहांगीरपुरी इलाके में पत्‍थर फेंकने के आरोप में 14 मुसलमानों को गिरफ्तार किया गया.
पूरे देश में एक तरह का उन्‍माद फैल गया है. इसी के प्रकाश में प्रतिष्‍ठित इतिहासविद् रामचन्‍द्र गुहा ने कहा है कि हम स्‍वतंत्र भारत के सबसे बुरे दौर से गुजर रहे हैं. और इसी के चलते कांग्रेस, एनसीपी, टीएमसी व डीएमके सहित 13 राजनैतिक दलों ने एक संयुक्‍त बयान जारी कर कहा कि ”हम बहुत व्‍यथित हैं कि सत्‍ताधारियों द्वारा जानते-बूझते खानपान, पहनावे, त्‍यौहारों व भाषा से जुड़े मुद्दों का इस्‍तेमाल हमारे समाज को ध्रुवीकृत करने के लिए किया जा रहा है. देश में नफरत से उपजी हिंसात्‍मक घटनाओं में तेजी से हो रही बढ़ोत्‍तरी से हम अत्‍यंत चिंतित हैं. ऐसा प्रतीत होता है कि जिन लोगों द्वारा ये घटनाएं अंजाम दी जा रही हैं उन्हें सरकार का संरक्षण प्राप्‍त है और उनके खिलाफ अर्थपूर्ण व कड़ी कार्यवाही नहीं की जा रही है”.
अल्‍पसंख्‍यकों के विरूद्ध धार्मिक जुलूसों में तो विषवमन किया ही जा रहा है, धर्मसंसदों में भगवाधारी (यति नरसिंहानंद, बजरंग मुनि एंड कंपनी) और धर्मनिरपेक्ष, प्रजातांत्रतिक भारत को हिन्‍दू राष्‍ट्र में बदलने के लिए आतुर कुनबा भी यही कर रहा है. तेर‍ह पार्टियों के संयुक्‍त बयान के जवाब में भाजपा के राष्‍ट्रीय प्रवक्‍ता संबित पात्रा ने हिंसा के लिए कांग्रेस की तुष्‍टीकरण की राजनीति को दोषी ठहराया है. यह महत्‍वपूर्ण है कि गोडसे ने गांधीजी की हत्‍या करने के लिए भी तुष्‍टीकरण के तर्क का उपयोग किया था.
भाजपा के मुखिया जे.पी. नड्डा ने कहा कि कांग्रेस षड़यंत्रपूर्वक समाज को बांट रही है. हम सब जानते हैं कि समाज नफरत के कारण बंट रहा है. इस नफरत का स्‍त्रोत है व्‍हाट्सऐप यूनिवर्सिटी और इस नफरत को समाज में फैलाने के लिए अन्‍य तरीकों के अतिरिक्‍त, उस तंत्र का प्रयोग भी किया जा रहा है जिनका वर्णन स्‍वाति चतुर्वेदी की पुस्‍तक ”आई वॉज़ ए ट्रोल” में किया गया है.
स्‍वतंत्रता के पूर्व, जब हिन्‍दू और मुस्‍लिम साम्‍प्रदायिक धाराएं एक-दूसरे के समानांतर परन्तु विपरीत दिशाओं में बह रहीं थीं, तब भी मस्‍जिदों के सामने से जुलूस निकालना, साम्‍प्रदायिक हिंसा भड़काने का पसंदीदा तरीका था. अब हिन्‍दू धार्मिक जुलूसों में डीजे शामिल रहते हैं, जोर-जोर से संगीत बजाया जाता है और मुस्‍लिम विरोधी नारे लगाए जाते हैं. ये जुलूस अक्‍सर मस्‍जिदों के ठीक सामने से निकाले जाते हैं. जुलूस में शामिल लोग तेज आवाज़ में बज रहे संगीत की धुन पर नाचते हैं और मुसलमानों के लिए अपशब्‍दों का प्रयोग करते है. इससे अल्‍पसंख्‍यक समुदाय के कुछ सदस्‍य भड़क जाते हैं और फिर पत्‍थरबाजी और हिंसा शुरू हो जाती है. पत्‍थर फेंकने वाले और हिंसा करने वाले कोई भी हो सकते हैं.
न्‍यायतंत्र को भी पंगु बना दिया गया है. सरकार स्‍वयं ही यह निर्णय कर लेती है कि दोषी कौन है और फिर उन्हें सजा भी सुना देती है. सजा के रूप में कई स्‍थानों पर अल्‍पसंख्‍यकों के घरों पर बुलडोज़र दौड़ाए जा चुके हैं. दिल्‍ली में सन् 2020 में हुई हिंसा के पहले कपिल मिश्रा, अनुराग ठाकुर और प्रवेश वर्मा जैसे लोगों ने अत्‍यंत भड़काऊ भाषण दिए थे. हिंसा के बाद जहां अमन की बात करने वाले उमर खालिद जैसे लोगों को गिरफ्तार किया गया वहीं अनुराग ठाकुर को पदोन्‍नति दी गई. हाल में जहांगीरपुरी में हुई हिंसा के बाद जिन लोगों ने उत्‍तेजक बातें कहीं थीं वे अपने घरों में आराम से हैं और जिन लोगों को आक्रामक नारों और अ‍न्‍य तरीकों से आतंकित किया गया था, वे जेलों में.
तेरह विपक्षी पार्टियों द्वारा इस घटनाक्रम का कड़ा विरोध आशा की एक किरण है. कम से कम कुछ लोग तो ऐसे हैं जो खड़े होकर हिम्‍मत से कह सकते हैं कि राजा नंगा है. परंतु क्‍या इतना काफी है? क्‍या ये पार्टियां एक कदम और आगे बढ़कर नफरत के वायरस के विरूद्ध अभियान शुरू नही कर सकतीं? माना कि इन पार्टियों का लक्ष्‍य सत्‍ता हासिल करना है परंतु क्‍या देश में भाईचारा बनाए रखना उनका संवैधानिक दायित्‍व नहीं है? जो लोग असली दोषियों को बचा रहे हैं और बेगुनाहों को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं उनका अपना राजनैतिक एजेंडा है. वे और उनके संगठन जानबूझ कर ऐसा कर रहे हैं. धार्मिक जुलूसों का इस्‍तेमाल नफरत और हिंसा भड़काने के लिए किया जा रहा है.
सांप्रदायिक हिंसा के पीछे का सच जानने के लिए अनेक शोध हुए है. उत्‍तरप्रदेश पुलिस के पूर्व महानिदेशक डॉ विभूति नारायण राय ने अपने पीएचडी शोधप्रबंध में बताया है कि कई बार अल्‍पसंख्‍यक समुदाय पहला पत्‍थर फेंकने के लिए बाध्‍य कर दिया जाता है. उन्‍हें इस हद तक अपमानित और प्रताडि़त किया जाता है कि वे प्रतिक्रिया करने के लिए मजबूर हो जाते हैं. डॉ राय का यह भी कहना है कि पुलिसकर्मी अल्‍पसंख्‍यकों के खिलाफ पूर्वाग्रहों से ग्रस्‍त हैं और यही कारण है कि हिंसा के पहले और उसके बाद गिरफ्तार किए जाने वालों में से अधिकांश अल्‍पसंख्‍यक समुदाय के होते हैं.
क्‍या हम भविष्‍य से कुछ उम्‍मीदें बांध सकते हैं? क्‍या अल्पसंख्‍यक समुदाय के बुजुर्ग और समझदार लोग अपने युवाओं को भड़कावे में न आने के लिए मना सकते हैं? क्‍या विपक्षी पार्टियां शहरों और कस्‍बों में शांति समितियों का गठन कर सकती हैं? क्‍या वे यह सुनिश्‍चित कर सकती हैं कि धार्मिक जुलूस जानबूझ कर मस्‍जिदों के सामने से न निकाले जाएं? अभी चारों तरफ घना अंधकार है. परंतु इसके बीच भी आशा की कुछ किरणें देखी जा सकती हैं. गुजरात के बनासकांठा के प्राचीन हिन्‍दू मंदिर में मुसलमानों के लिए इफ्तार का आयोजन किया गया. उत्‍तर प्रदेश में कुछ स्‍थानों पर मुसलमानों ने हनुमान जयंती के जुलूस पर फूल बरसाए. हम यह उम्‍मीद कर सकते हैं कि इस तरह की गतिविधियां आगे भी होती रहेंगी. दोनों समुदायों के लोग एक-दूसरे के प्रति प्रेम और सद्भाव रखेंगे, ऐसे स्‍वार्थी तत्‍वों, जो नफरत फैला कर अपना राजनैतिक उल्‍लू सीधा करना चाहते हैं, से दूर रहेगें और उनके मंसूबों को कामयाब नहीं होने देंगे. इसके साथ ही ऐसे तत्‍वों को उनके कुकर्मो की सजा मिलनी भी जरूरी है.
पिछले कुछ समय से देखा यह जा रहा है कि नफरत की तिजारत करने वालों को राज्‍य बढ़ावा व संरक्षण देता है ताकि वे खुलकर अपना काम कर सकें. अब समय आ गया है कि नागरिक समाज और राजनैतिक संगठन नफरत को समाज से मिटाने, भड़काऊ बातें करने वालों को रोकने और केवल अशांति फैलाने के लिए की जाने वाली धार्मिक गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिए आगे आकर काम करें. (अंग्रेजी से रूपांतरण अमरीश हरदेनिया) 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

1 Comment