कोरोना वायरस को लेकर लोग तरह तरह के तर्क वितर्क लगा रहे है. कोई बिमारी फ़ैलाने के लिए चीन के संकी खोज को जिम्मेदार ठहरा रहा है तो कोई चाइना में जिंदा जानवर जैसे सांप, बिच्छु, कुत्ते, चमगादड़, चूहे, बिल्ली, अदि खाने को लेकर कोरोना फैलने की बात कह रहा है. तो कोई यह मानने को तैयार ही नहीं के कोरना वायरस नाम की कोई बिमारी है. उनमे से एक है सामाजिक कार्यकर्ता जितेंद्र पथरौल जो एक अच्छे लेखक भी है. उन्होंने लिखा.
मैं आज तक इस बात पर अडिग हूँ कि कोरोना नाम की कोई बीमारी ही नहीं है। जिस तरह से कोरोना को महामारी बताया जा रहा है और ये भी कहा जा रहा है कि कोरोना की अभी तक कोई । दवा नहीं बनी, अगर दवा नहीं बनीं तो फिर मरीज सही कैसे हो रहे है। मरीज सही हो रहे है तो इसका मतलब है कि कोरोना नाम की कोई बीमारी ही नहीं है। और यदि आप हॉस्पिटल में आइसोलेट हुए लोगों को देखेंगे तो पायेंगे कि जिस तरह से कोरोना का प्रचार किया जा रहा है उस हिसाब ऊन लोगों की सही ढंग से जाँच और ईलाज भी नही हो रहा है। सामान्य व्यक्ति का हॉस्पिटल से बच कर जिन्दा आना ये उस व्यक्ति के धैर्य,साहस और अच्छी रोगप्रतिरोधक क्षमता पर निर्भर है। अन्यथा हॉस्पिटल में आपके मरने का पूरा इंतजाम है। सहर्ष आप कोरोना में विश्वास रखते हुए जुखाम में भी कोरोना की जाँच करा सकते है। “मैं आज भी कोरोना को नहीं मानता।”
(सामाजिक कार्यकर्ता लेखक अलाहाबाद के जितेंद्र पथरौल के निजी विचार है,)
– SD24 News Network