बीजेपी को उनके ही फॉर्मूले से निपट रहे है, कोरोना के बीच राष्ट्रीय पटल पर उभरे उद्धव ठाकरे

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बीजेपी को उनके ही फॉर्मूले से निपट रहे, कोरोना के बीच राष्ट्रीय पटल पर उभरे उद्धव ठाकरे
2014 के लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान ही नरेंद्र मोदी ने आक्रामक हमले का तरीका अपना लिया था. यह सिर्फ चुनावी जनसभाओं तक सीमित नहीं था. मोदी समर्थक विभिन्न नेताओं की जनसभा में पहुंच जाते थे और वहां हंगामा खड़ा करते थे, मोदी-मोदी के नारे लगाते थे. इसके अलावा सोशल मीडिया पर विपक्ष पर आक्रामक हमले शुरू हुए.


जवाहरलाल नेहरू से लेकर राहुल गांधी तक के चरित्र हनन के वीडियो और टेक्स्ट मैसेज सर्कुलेट होने लगे, लेकिन कांग्रेस सरकार सोती रही. कभी उसने यह कवायद नहीं की कि जाना जा सके कि इसका सूत्रधार कौन है. नेताओं के चरित्रहनन के मैसेज फैलाने वालों के खिलाफ कांग्रेस सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की. उसके बाद बीजेपी सत्ता में आ गई और यह मामले और तेजी से बढ़ गए, चलते ही रहे. यहां तक कि विपक्ष या कांग्रेस शासित राज्यों में भी सोशल मीडिया पर विपक्षी नेताओं के हो रहे चरित्र हनन के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई.


अब उद्धव ठाकरे ने वह ट्रेंड बदल दिया है. न सिर्फ सोशल मीडिया पर ऊल जुलूल मैसेज भेजने वालों के खिलाफ एफआईआर हो रहे हैं, बल्कि शिवसेना भी उनसे निपट रही है.
मुंबई में न सिर्फ देश भर के विस्थापित श्रमिक बड़ी संख्या में मौजूद हैं, बल्कि आर्थिक राजधानी होने के कारण बड़े पैमाने पर वहां विदेशों से आवाजाही भी ज्यादा है. इसे देखते हुए मुंबई कोरोनावायरस के लिहाज से सबसे खतरनाक शहर है. मजदूरों के घर इतने छोटे हैं कि वहां शारीरिक दूरी रखना मुश्किल है. फरवरी में ही ठाकरे ने मुंबई के हवाईअड्डों पर जांच शुरू करा दी थी और लोगों को क्वारंटीन करना शुरू कर दिया था. हालांकि मुंबई हवाईअड्डे से अन्य राज्यों को जाने वाले लोगों पर काबू नहीं रखा जा सका, लेकिन मोदी सरकार द्वारा लॉकडाउन की घोषणा के पहले ही महाराष्ट्र में हजारों की संख्या में लोगों की जांच हो चुकी थी और उन्हें क्वारंटीन कर दिया गया था.


राज्य में कोरोना फैलने के बीच महाराष्ट्र सरकार ने मजदूरों या मुसलमानों के खिलाफ घृणा नहीं फैलने दी. घृणा फैलाने वालों पर कठोर कार्रवाई की गई और चैनल व अखबारों ने भी ऐसे मामलों में बहुत संभलकर रिपोर्टिंग करना शुरू किया. एक तरफ जहां पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के खिलाफ केंद्र की लड़ाई सुर्खियां बनती रहीं, वहीं उद्धव ने केंद्र से न तो कोई लड़ाई लड़ी और न ही केंद्र व राज्य के बीच जंग को सुर्खियां बनने दी. वह बहुत बारीकी से बीजेपी-आरएसएस के तौर तरीकों से केंद्र सरकार से सफलतापूर्वक निपटते रहे हैं.
उद्धव ऐसे नेता के रूप में उभरकर सामने आए हैं, जो केंद्र सरकार और बीजेपी के तौर तरीकों के खिलाफ उसी की भाषा में निपट रहे हैं. बीजेपी के दांव उद्धव पर काम नहीं आ रहे हैं. इसकी एक वजह मुंबई का आर्थिक राजधानी होना है, वहीं दूसरी वजह शिव सेना कार्यकर्ताओं की आक्रामकता है. वह सरकार से संसद से लेकर सड़क तक दो-दो हाथ करने को तैयार हैं.
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