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ईद विशेष : आजाद भारत का जलियांवाला बाग मुसलमानों का नरसंहार
भाजपा नेता एवं विदेश राज्य मंत्री ‘एम जे अकबर’ साहब जो मुरादाबाद दंगों के वक़्त युवा पत्रकार थे। उन्होंने अपनी किताब राइट आफ़्टर राइट में लिखा है कि, “उस दिन ईदगाह में सुरक्षा बल के जवान, ईद की नमाज़ पढ़ रहे लगभग चालीस हज़ार मुसलमानों पर फ़ायरिंग शुरू कर दिए थे। कोई नहीं जानता कि कितने लोग मारे गए थे। लेकिन ये सबको पता है कि ये हिंदू-मुस्लिम दंगा नहीं था बल्कि मुसलमानों पर सुरक्षा बलों द्वारा एक सुनियोजित नरसंहार था, जिसे बाद में इस नरसंहार को हिंदू-मुस्लिम दंगे का रूप दे दिया गया था”।
सांसद सैय्यद शहाबुद्दीन साहब ने इस नरसंहार को आज़ाद भारत का जलिया वाला बाग नरसंहार कहा था।
जो लोग आज मीडिया को कहते हैं कि सत्ता के हाथों बिक चुकी है उन लोगों को तीन-चार दशक पीछे जाकर देखना चाहिए कि किस तरह से उस वक़्त के हिंदी और अंग्रेज़ी अख़बार सुरक्षा बलों के इस साम्प्रदायिक रोल को बैलेन्स करते नज़र आ रहे थे और इस वीभत्स नरसंघार को हिंदू-मुस्लिम दंगे का नाम देकर सत्ता एवं प्रशासन की क्लीन चिट भी दे रहे थे।
किस तरह से उस वक़्त की पत्रकारिता सत्ता पक्ष की दलाली कर रही थी। यही नहीं ज़मीरफरोश पत्रकारों ने ख़ूब फ़र्ज़ी ख़बर भी चलाकर साम्प्रदायिकता की हवा को तेज़ कर रहे थे और विक्टिम समुदाय को ही अपराधी बनाने पर तुले थे।
वामपंथी मीडिया पूरी तरह से कांग्रेस के पक्ष में बैटिंग कर रही थी, रोमिला थापर के भाई रोमेश थापर हों या फिर कृष्णा गांधी, सब के सब ने इस दंगों पर उलटा इल्ज़ाम वहाँ के मुसलमानों के सर पर मढ़ दिया था। आज यही वामपंथी जब अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा एवं मानवाधिकार की बात करते हैं तो इसपर सिर्फ़ हँसा जा सकता है।
आयरन लेडी इंदिरा गांधी जी, इनकी बात ही क्या करें। ये तो इस दंगों की वजह पाकिस्तान को बता दी थी। अपनी साम्प्रदायिक प्रशासन व्यवस्था को सज़ा देने के बजाय मुसलमानों को ही अंत तक क़सूरवार मान रही थीं।
दरअसल मुरादाबाद नरसंहार धर्मनिरपेक्ष सियासतदानों द्वारा दिया गया एक बहुत बड़ा ज़ख़्म है, लोकतांत्रिक राष्ट्रों में ऐसी नरसंहार ढूँढने पर नहीं मिलेगी कि जहाँ सुरक्षा बल के लोग सत्ता के इशारे पे अपने ही नागरिकों की हज़ारों की संख्या में क़त्ल किए हों। वाया सोशल मीडिया