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ट्रेनों में मिल रही लाशें बताती हैं कि यात्रा के दौरान न मेडिकल टीम है और न ही सुरक्षाकर्मी
रिहाई मंच ने की आज़मगढ़ के प्रवासी मृतक मजदूर राम रतन गोंड के परिजनों से की मुलाकात
लखनऊ/आजमगढ़ 31 मई 2020. आजमगढ़ के राम रतन गोंड (जिनकी मुंबई से श्रमिक ट्रेन से आते हुए मौत हो गई) के पोस्टमार्टम में देरी पर रिहाई मंच ने सवाल उठाया है.
मंच ने रेलवे के बयान पर भी सवाल उठाया है कि वो पहले से बीमारी से ग्रस्त थे जिसके कारण उनकी मौत हुई, जबकि श्रमिक ट्रेन में रजिस्ट्रेशन करने के बाद मजदूर का मेडिकल चेकअप कराकर स्वास्थ की पुष्टि करते हुए रेल में बिठाया जाता है.
रिहाई मंच ने उनके परिजनों से मुलाकात की, प्रतिनिधि मंडल में रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव, विनोद यादव, आदिल आज़मी, अवधेश यादव और बांकेलाल शामिल रहे.
मंच की विज्ञप्ति में बताया गया है कि प्रतिनिधि मंडल को मृतक प्रवासी मजदूर राम रतन गोंड़ के भाई ने बताया कि वो मुंबई के बोरिवली में पान की दुकान चलाते और कांदिवली में रहते थे. उनके दामाद संजय गोंड़ ने बताया कि उन्होंने आने के लिए रजिस्ट्रेशन करावाया और जब मुंबई से चले तो उनका चेकअप भी हुआ था और वो ट्रेन में चलते समय स्वस्थ थे.
राजेश गोंड़ जो कि अपने पिता की खबर सुनकर वाराणसी गए थे, से बात हुई तो उन्होंने बताया कि 27 तारीख की सुबह 8.30 बजे ट्रेन वाराणसी के मंडुआडीह पहुंची और ट्रेन खाली होने के कुछ समय बाद ट्रेन से लाश प्राप्त हुई.
उन्होंने बताया कि बहुत ही मुश्किल से लाश मिली जब कोरोना के सैंपल कलेक्शन की बात आई तो किट मौजूद नहीं थी और जब किट आई तो डॉक्टर नहीं थे. इस वजह से 28 तारिख को सैंपल कलेक्शन नहीं हो पाया और मौके पर मौजूद पुलिस वाले ने बताया कि अब कल यानी कि 29 तारीख को सैंपल लिया जाएगा. रिपोर्ट आने के बाद ही कुछ हो पाएगा. यह सुनकर हम लोग वापस घर लौट आए. साथ में उनके गांव के प्रधान हरिनारायण यादव भी वाराणसी गए थे उन्होंने भी यही बात कही.
रिहाई मंच प्रतिनिधिमंडल ने कहा कि ट्रेनों में आ रहे श्रमिकों की मौतों पर जिस तरह से यह कहा जा रहा है कि बीमारी से मौत हुई वह रेलवे द्वारा अपनी गैरजिम्मेदाराना भूमिका को छिपाने की कोशिश है, क्योंकि श्रमिकों को मेडिकल के बाद ही लाया जा रहा है. जिस तरह से यह बात सामने आई कि यात्रियों के उतर जाने के बाद ट्रेन में राम रतन गोंड़ की लाश मिली उससे यह स्पष्ट होता है कि यात्रा के दौरान मेडिकल टीम और सुरक्षा कर्मी मौजूद नहीं थे. मजदूरों को भूसे की तरह ट्रेनों में भरकर सरकारें अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जा रही हैं.
पिछले दिनों जिस तरह से ट्रेनें रूट भटक कर कहीं के लिए निकली थीं कहीं पहुंच गईं. यह कैसे हो सकता है. क्या ट्रेन बिना गार्ड और लोको पायलट के चलाई जा रही। अगर ऐसा है तो सरकार मजदूरों को भीषण हादसे में झोंक रही है.
रिहाई मंच ने कहा कि राम रतन गोंड़ की मौत हो या फिर राम अवध चौहान की सभी में देखा गया कि पोस्टमार्टम में देरी की जा रही है। इस तरह की देरी ना सिर्फ अमानवीय है बल्कि परेशान हाल मजदूरों के हौसले को भी तोड़ रही है।