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गलवान घाटी की खोज 1899 में एक मुसलमान ने की थी, नाम था गुलाम रसूल
गलवान घाटी भारत का हिस्सा है इसे साबित करने के लिए एक किताब के द्वारा बताया गया है के गलवान घाटी की खोज 1899 में गुलाम रसूलम गलवान ने की थी । इन्ही के नाम पर इसका नाम गलवान वैली पड़ा । ये अंग्रेज सर्वेयर टीम के सदस्य थे ओर इन्हे उस क्षेत्र के सर्वे का काम सोपा गया था । गुलाम रसूल गलवान भारत स्थित लेह के रहने वाले थे ओर इनका मकान आज भी लेह में स्थित है । ओर कश्मीर में इनके नाम पर एक गांव भी है । कल बीबीसी हिंदी ने इस पर #न्यूज प्रसारित की । अब कहा है कागज मांगने वाले ? अब खुद के कागज मुसलमानों के द्वारा सत्यापित कराए जा रहे हैं|
भारतीय जवान और चीनी आर्मी पूर्वी लद्दाख के गलवान घाटी में आमने-सामने हैं. वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) विवाद ने वहां हिंसक झड़प का रुख ले लिया. इसमें भारतीय सेना के एक अधिकारी समेत कई जवान बलिदान हुए. वहीं कई चीनी सैनिक भी ढेर हुए. दोनों देशों की सरकार और अफसर शांति के लिए बातचीत कर रहे हैं ।
लगभग 14 हजार फीट की ऊंचाई और माइनस 20 डिग्री तक गिरने वाले तापमान वाली जगह गलवान घाटी में जारी तनाव के बीच हम इसके इतिहास के बारे में जानने की कोशिश करते है ।
अक्साई चीन इलाके में आती इस जगह पर चीन हमेशा बुरी नजर रखता है । 1962 से लेकर 1975 तक भारत- चीन के बीच जितने भी संघर्ष हुए उनमें गलवान घाटी ही फोकस था. 1975 के बाद अब यह साल 2020 में फिर से सुर्खियों में है ।
इस खूबसूरत घाटी का नाम लद्दाख के रहने वाले चरवाहे गुलाम रसूल गलवान के नाम पर रखा गया. यह एक ऐतिहासिक घटना थी जब किसी नदी या घाटी का नाम उसकी तलाश करने वाले एक चरवाहे के नाम पर रखा गया. मौजूदा समय में लेह के चंस्पा योरतुंग सर्कुलर रोड पर गुलाम रसूल के पूर्वजों का घर है । उनके नाम पर यहां गलवान गेस्ट हॉउस भी है । अभी यहां उनकी चौथी पीढ़ी के कुछ सदस्य रहते हैं ।
साल 1878 में पैदा हुआ गुलाम महज 14 साल की उम्र में घर से निकल पड़ा. नई जगहों को खोजने के जुनून की वजह से वह अंग्रेजों का पसंदीदा गाइड बन गया. हालांकि, लद्दाख के इलाके अंग्रेजों को ज्यादा पसंद नहीं आते थे. 1899 में उसने लेह से ट्रैकिंग शुरू की थी. लद्दाख के आसपास गलवान घाटी और गलवान नदी समेत कई नए इलाकों तक वह पहुंचा था ।