हमें पति नहीं चाहिए, दोस्त चाहिए -शैलजा पाठक
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हमें पति नहीं चाहिए, दोस्त चाहिए -शैलजा पाठक
सुबह उसके डर से उठ कर नही बनानी चाय
अलसा जाना है
कहना है यार बना दो न आज तुम चाय
पति नही चाहिए जो मेरी पुरानी डायरी की छाती से चिपकी एक मात्र सूखी पंखुरी को देख तंज करे
जबरजस्ती घुसे मेरी कविताओं के नायक की पड़ताल करे
दोस्त चाहिए मुस्कराता सा पूछे
यार हमें भी बताओ अपने दोस्तों के बारे में
कितना सुंदर अतीत था न तुम्हारा
पति नही के खिड़की में आँखे गाड़ मुझे किसी से बात करता देख शक की कोई पूरी कहानी बना ले
चमड़ी उधेड़ देने की बात करे
साली दुनियाँ भर के लोगो से बतियाती है
के खोभ से मरता रहे
दोस्त चाहिए
प्यार से पूछे और कहे यार तुम कितने लोगों को जानती हो न
कितनी सोशल हो
बात करने का संकोच नहीं तुममें
मैं नही कर पाता हूँ सहज इतनी बातें
पति नही चाहिए
मेरे मासूम सपनों का सुन कर भी जिसकी नाराजगी की जमीन में कांटे उग आए
यात्राओं में कौन आवारा औरतें है जो अकेली जाती है
कमाएं हम और मौज के सपनें तुम देखो
दोस्त चाहिए
खुद हो कहे
कभी दोस्तो के साथ पहाड़ की यात्रा पर जाना
रुकना किसी रात उनके घर
बारिशों में कभी चाय पार्टी करना
बहुत बहुत अच्छा फ़िल करोगी
खूब ऊर्जा के साथ लौटोगी घर में
पति नही चाहिए
जिसकी कॉलर साफ करूँ
जिसके जूते जगह पर रखूं जिसकी गाड़ी की चाभी देना न भूलूँ
जिससे बात कहने और सुनने में भरी रहूं डर से
दोस्त चाहिए
जिसे गलबहियां डाल कहूँ
जरा मेरी तारीफ करना
कोई गीत गाना मेरे लिए
मेरे नखरे उठाओ
बस आज
मैं लो फ़िल कर रही
पति नही चाहिए
जो बारिश होते चीखने लगे
बाहर के कपड़े उठा लेती
सामान अंदर कर लेती
उधर खिड़की पर बैठी मूर्खो सी भींग रही हो
दोस्त चाहिए
तेज बारिश में हाथ खींच कहे खिड़की पूरी खोल दो
आने दो तेज बौछार
भिंगो न यार साथ में
कपडे फिर सुखा लेंगे
हमें ज्यादा तो कभी नही चाहिए था
कविता : शैलजा पाठक, (अपनी प्रतिक्रिया निचे कमेट बॉक्स में लिखिए आप ईमेल भी कर सकते हो, socialdiary121@gmail.com)