राजस्थान : राजनीतिक उठा पटक के दुरुपयोग, दुष्परिणाम और निरंकुश व क्रूर सत्ता – सुमन कृष्ण

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राजस्थान में राजनीतिक उठा पटक के दुरुपयोग, दुष्परिणाम और निरंकुश व क्रूर सत्ता – सुमन कृष्ण
अभी राजस्थान में राजनैतिक उठा पटक चल रही है और नैतिकता की दुहाईयां भी दी जा रही है। लेकिन आम जन को समझने की जरूरत है कि सत्ता हमेशा निरंकुश व क्रूर होती है और जब पूर्ण बहुमत मिलता है तब ओर ज्यादा क्रूर हो जाती है और समाज के हर अंग को नियंत्रित करने के लिए ऐसी व्यवस्था का निर्माण करती है जिसको बदलना बहुत मुश्किल हो जाता है, उदाहरण के लिए-



राजस्थान के शिक्षा विभाग में स्थानांतरण उधोग की शुरूआत
1998 में राजस्थान की जनता ने कांग्रेस पार्टी के 150 से ऊपर विधायक चुनकर विधान सभा में भेजे थे – उसके बाद सरकार द्वारा एक ऐसी राजनैतिक व्यवस्था बनाई गयी जिसके तहत हर विधायक को डिजायर सिस्टम के आधार पर शिक्षकों के स्थानांतरण करने का अधिकार दिया गया।



इस डिजायर सिस्टम का इस्तेमाल/दुरूपयोग किस प्रकार किया गया
(1) प्रथम स्तर पर अपने पसंदीदा शिक्षक जो राजनैतिक फायदा पहुंचा सकते थे/हैं उनको उनकी मनपसंद जगह पर सेट किया गया।
(2) द्वितीय स्तर पर जो शिक्षक अपने काम से काम रखते, शिक्षा व विद्यार्थियों के प्रति समर्पित थे/हैं तथा जो नेताओ की हाजरी नहीं लगाते या हाँ में हाँ नहीं मिलाते उनको सजा देते हुए दूर स्थानों पर भेजा गया। यह उनके स्वाभिमान को तोड़ने का कदम था।



(3) तीसरे स्तर पर जो शिक्षक राजनैतिक रूप से सक्रिय थे तथा जो विरोध में थे उनको दूर के विद्यालयों में स्थानांतरित किया गया।
(4) ऊपर के नंबर (2) व (3) वाले अध्यापक कुछ समय बाद जब वापस अपने नजदीक के स्थान पर आने के प्रयास करने लगे तब नेताओ व दलालों को पैसा कमाने का एक अच्छा अवसर मिल गया जिसके तहत धीरे धीरे नियमो में सुविधानुसार परिवर्तन करके एक ऐसा सिस्टम तैयार कर दिया जिसमे पैसे देकर अपनी नजदीकी विद्यालय में आ जाओ ।



यह सिस्टम आज भी 22 साल [ 4 सरकारें बदल चुकी ] बाद भी यथावत हैं और सबने अपने आपको इस सिस्टम के अनुसार एडजस्ट कर लिया है ।
इसके दुष्परिणाम –
(1 ) जो सिस्टम नीतिगत आधार पर चलना चाहिए, उसके स्थान पर एक स्थानीय आधुनिक सामंती सिस्टम खड़ा कर दिया [ semi fuedal ]



(2 ) शिक्षक वर्ग का स्वाभिमान ख़तम ।
(3 ) भ्रष्टाचार को सिस्टम का हिस्सा बना दिया ।
(4 ) कोई भी पैसा अपनी जेब से खर्च नहीं करता है, तो अध्यापक वर्ग ने भी अलग अलग तरीके तलाश कर लिए पैसा कमाने के और शिक्षा उनके लिए गौण होती चली गयी, सरकारी विद्यालयों में शिक्षा के गुणवत्ता में गिरावट।



(5 ) इसके बाद शिक्षा का निजी क्षेत्र में फैलना शुरू हो गया,फीस बढ़नी शुरू हुई, कोचिंग इंस्टीट्यूट बनने लग गये।
सत्ता ही समस्या के मूल में हैं, इसलिए सरकारों की नाक में नकेल डालकर रखना समय की मांग है।
-लेखिका सुमन किशोर द्वारा संकलित उनके निजी विचार

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