नई दिल्ली : दिल्ली में हुए अमानवीय दंगो की परत दर परत खुलती ही जा रही है । सोशल मीडिया के माध्यम से सनसनीखेज जानकारी सामने आ रही है । भारतीय मीडिया 99% बिकाऊ होने की बात तो जनता अच्छी तरह से जान चुकी है । इसीलिए लोग अब सोशल मीडिया का सहारा ले रहे है । शायद यही वजह है के सोशल मीडिया पर भी पाबन्दी की तलवार लटक रही है । क्यूंकि सोशल मीडिया से लोगो को जितना नुक्सान उठाना पड़ रहा है उससे कई गुना हो रहा है । “लेकिन वो कहावत है ना के गेहूं के साथ कीड़े भी मारे जाते है” ।
पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता Parmod Pahwa अपनी पोस्ट से सबको हिला कर रख दिया है । उन्होंने लिखा, दंगा प्रभावित क्षेत्रों में हमारे आने जाने की पोस्ट देखकर या मीडिया से जुड़े होने के संदर्भ में किसी ने संपर्क किया है कि जनपद बागपत, तहसील खेकड़ा ग्राम रटौल जो गूजर बहुल है। इस गांव से दंगे से एक दिन पहले 45 युवकों को कोई नेता प्रति व्यक्ति 30 हजार देने के आश्वासन पर साथ ले गया था।
अगले दिन तीस युवक वापिस आ गए, शेष 15 में से 3 के शव आए हैं और 12 अभी लापता है । लापता लडको की दिल्ली में तलाश के लिए सहायता मांग रहे थे। यद्धपि मै उनके दंगो के लिए भाड़े पर लाए जाने की न पुष्टि करता हूं न समर्थन करता हूं लेकिन उनके परिवावालों का दंगा ग्रस्त क्षेत्रों में तलाश करवाना संदेहास्पद है। जहां भी हो सकुशल हो क्योंकि मां बाप का तो जीवन भर का रोना हो गया।