Connect with us

Uncategorized

पसमांदा(पिछड़े) मुसलमानों को भी अपने ‘अम्बेरडकर’ की दरकार..

Published

on

SD24 News Network Network : Box of Knowledge
हुस्न तबस्सुम ‘निहाँ’
माना तो ये जाता रहा है कि इस्लामम जाति, वर्ग, भेद इत्याशदि स्वी…कार नहीं करता और ना ही इसे विस्तासर देने की इजाजत देता है। किंतु इसके बावजूद मुस्लिमों ने वर्ग भेद तथा मुस्लिम जटिलताओं को धारण कर रखा है। परिणामत: आज मुस्लिम समाज में अंतर्कलह व वर्ग-संघर्ष पूरी तरह से अपने पैर जमा चुका है।
यह बात दीगर है कि इस्लामम में जात-पात अथवा ऊँच-नीच का भेद नहीं किया गया है। यह तो कुलीन वर्गों द्वारा बना लिए गए दायरे हैं। वास्ताव में मुस्लिम समाज में जो जाति या वर्ग व्यजवस्थात शुरू हुई उसका मुख्यव आधार रोजगार या पेशा था।
हालांकि मोहम्ममद साहब ने ये तक कहा कि “मैं जात-पात, ऊँच-नीच सब अपने पैरों के नीचे कुचलता हूँ’’ जिसका सीधा सा अभिप्राय: है कि उन्होंसने जाति व्यहवस्था् को बिल्कुसल जगह नहीं दी, फिर भी आज जिस तरह से मुस्लिम समाज वर्ग भेद से ग्रस्तं है वो दु:ख का विषय है।
छ: दिसम्बहर 2007 को जब देश का सारा मुसलमान बाबरी मस्जिद के विध्वंदस की सोलहवीं वर्षगांठ मना रहा था और एक शोकाकुल माहौल था, ठीक उसी समय बिहार के चम्पाीरण जिले के एक छोटे से गाँव रामपुर बैरिया में उसी रात मुसलमानों की वर्चस्विशाली जाति अशराफ ने अपने ही समाज की कमजोर जाति या पिछड़ी जाति के छ: घरों को आग लगा दी।
यह विवाद कुछ माह पूर्व नमाज पढ़ने के हक को ले कर हुआ। किसी रोज गाँव की मस्जिद में नमाज के दौरान कुछ सैय्यद व पठान लोगों ने जुलाहों (अंसारी) और मंसूरी (धुनिया) जैसी कमजोर जातियों के नमाजियों  को कोहनी मार कर पीछे की कतार में जाने का संकेत किया। जब इस बिरादरी के लोगों ने इसका विरोध किया तो उन्हेी ज़बरदस्तीम मस्जिद के बाहर खदेड़ दिया गया।
अंतत: इन कमजोर जातियों ने मिलकार अपने समूह के लिए घास-फूस की एक अलग मस्जिद का निर्माण किया और वहीं नमाज अदा करने लगे। यह एक प्रकार से उनका अशराफियों के प्रति बहिष्का्र था जो अशराफ मुस्लिमों को सहन नही हुआ। उन्होरने इस घास-फूस से बनी मस्जिद पर भी चढ़ाई कर दी। वे इस मस्जिद को जला देना चाहते थे। इस प्रकार कमजोर जातियाँ ऊँची जातियों के कोप का भजन बनती आ रही हैं।
वास्तकव में इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि समता इस्लाेम धर्म का मौलिक सिद्धांत है। किन्तुण यह भी सच है कि जहाँ आर्थिक स्त।रीकरण की स्थिति आती है वहाँ समूह और वर्ग की बंदिशें ख़ुद-ब-ख़ुद पैदा हो जाती है। यद्यपि इस्लाम धर्म एक ऐसे समाज में विकसित हुआ जिसका आधार समूह थे और सभी समूहो में व्यािपक भिन्ता्एँ विद्यमान थीं, इसलिए यह भी माना जाना चाहिए कि इसमें स्तारीकरण पहले से ही मौजूद था।
मुसलमानों में जाति विभाजन का आधार मूलत: श्रम-विभाजन है। यही कारण है कि भारत में इस्लाम धर्म में समता के सिद्धांत पर जोर देने के बावजूद दूसरे धर्मों के अनुयायियों की तरह मुसलमान समाज में भी जातिप्रथा का तत्त्व घर किए हुए है। अंतर सिर्फ इतना है कि इसका स्विरूप इतना संकीर्ण और तीव्र नहीं है जितना भरतीय हिंदू समाज में है।
पूरा मुस्लिम समाज दो भागों में विभाजित है। अशराफ और गैर-अशराफ। अशराफ जाति के अंतर्गत सैययद, शेख, मुगल, पठान आते हैं। ये चारों जातियाँ अपने ऊँचे होने का दावा करती हैं। जबकि अन्य‍ सभी गैर-अशराफ जातियों को हिंदुओं से जाति बदल कर आए लोग कहा जाता है। इन्हेंत अजलाफ यानि पिछड़ा माना जाता है, इसके अलावा भी एक जाति समूह है जो अरजाल अर्थात दलित के नाम से जाना जाता है।
अजलाफ और अरजाल जातियों में आने वाली जातियाँ निम्ना प्रकार हैं-
जुलाहे, मीरासी (गवैये) दर्जी, हलवाई, मनिहार (चूड़ी विक्रेता), नाई, बकर कस…
loading…

Continue Reading
Advertisement
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Exit mobile version