हरा रंग दिल को चुभता क्यों है ? माफ करना मुहब्बत अरबी का शब्द है

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माफ करना मुहब्बत अरबी का शब्द है
खुरच डालो हर नाम को, हर प्रतीक को हर तहजीब को  कोई भी निशान बचना नहीं चाहिए जिससे मुसलमान की खुशबू आए साझेपन की बू आए मल-मल कर धो डालो अपनेपन की परंपरा को
मुसलमान तुम्हारे दिलों में कांटे की तरह चुभे हुए हैं  तुम्हारी नींद हराम किए हुए हैं क्योंकि मुसलमान तुम्हारे लिए इंसान नहीं भाई-बंद नहीं इस देश की मिट्टी के वाशिंदे नहीं गजनी, गोरी, बाबर और चंजेग खां हैं
पूरे मध्यकाल को इतिहास के पन्नों से मिटा दो सूफियों के प्रेम भरे गान को मुहब्बत के पैगाम को अपनी नफरत की आग में झोंक दो उर्दू के हर शब्द को शब्दकोशों से निकाल दो मीर, गालिब , इकबाल और फिराक का नामोनिशान मिटा दो अपने-अपने पायजामों को फाड डालो नंगे हो जाओ क्योंकि यह इस्लामी लिबास है
पीरों की मज़ारों को खोद डालो जैसे कि वली की मजार को खोदा था जिनकी हिंदू और मुसलमान दोनों इबादत करते हैं हर साझेपन की विरासत को मिटा दो किसी को आदमी मत रहने दो सबको हिंदू या मुसलमान बना दो
इश्क़ और मुहब्बत को अपने पास फटकने भी मत दो  ये अरबी-फारसी के शब्द हैं उनकी जगह हिंदी के घृणा को अपना लो मैं कह रहा हूं न फिर तुम्हे चैन नहीं मिलेगा चैन से जीने के लिए मुहब्बत का शऊर चाहिए जो तुम्हारे पास नहीं, तुमको इससे घृणा है, क्योंकि यह अरबी का शब्द है
– संजीत कुमार

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