हमारे पुरखों ने 550 टुकड़ों में बंटे भूभाग को मिलाकर एक देश बनाया था

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हमारे पुरखे, जिन्होंने यह देश बनाया था, उनमें से किसी का नाम भगत था, किसी का नाम अशफाक था. किसी के कांधे पर जनेऊ था, किसी के होंठों पर कुरान की आयतें थीं, किसी के हाथ में गीता थी तो किसी की जबान पर वाहे गुरु. किसी के सिर पर चोटी थी, किसी के चेहरे पर एकमुश्त दाढ़ी, किसी के माथे पर तिलक थी, तो किसी ने अपनी मजहबी पहचान को तिलांजलि दे दी थी और बाल कटवा कर नास्तिक हो गया था.
हमारे पुरखों ने 550 टुकड़ों में बंटे एक भूभाग को मिलाकर एक देश बनाया था. वे एक गरीब देश के अति साधारण लेकिन महान लोग थे. वे एक धोती में तन ढंकते थे और दुनिया के सबसे बड़े साम्राज्य से लड़ रहे थे. उनमें से कोई नेता बना, कोई बैरिस्टर बना, कोई मास्टर बना, कोई डॉक्टर बना, कोई किसान रहा, किसी ने मजदूरी की. करोड़ों ऐसे लोगों का इस देश को बनाने में और इसे यहां तक पहुंचाने में योगदान है जिनकी कहानियां कभी कही ही नहीं गईं.

यह देश बनाने के लिए हमारे पुरखों का रक्त बहा है. उनकी हड्डियां टूटी थीं. उन्हें गोलियों से भूना गया था. उन्हें इलाहाबाद से लेकर बनारस तक मार कर टांग दिया गया था. इलाहाबाद में नीम का पेड़ सुने हो कभी? फैजाबाद और गोरखपुर की जेलों की कहानियां सुने हो कभी?
कोई जाकर रंगून में दफन हो गया, कोई फैजाबाद की जेल में फांंसी पर झूल गया. कोई गोरखपुर की जेल में मार दिया गया तो किसी ने फांसी चढ़ने से पहले इंकलाब जिंदाबाद का नारा लगाते हुए लाहौर सेंट्रल जेल में की अंग्रेजी दीवारों में दरार फोड़ दी थी.
हम उस भारत के लोग हैं जहां आस्तिकता के साथ नास्तिकता भी दर्शन है. हम उस भारत के लोग हैं जहां दुनिया के सभी धर्मों के अनुयायी मौजूद हैं. हम उस भारत के लोग हैं ​जहां हमारे पुरखों ने लाख खून खराबे के बाद सबके लिए बराबरी की गारंटी दी है. हम उस भारत के लोग हैं जहां से अमेरिका जाकर कोई विवेकानंद कह पाता है कि हमें अपनी विविध पहचान पर गर्व है.
हम तुम्हें विवेकानंद से यह गर्व छीनने नहीं देंगे.
हमारे बाप, दादा, परदादा और हमारे पुरखों के शरीर इसी माटी में मिले हुए हैं. हमारे गंगा और जमुना के मैदानी इलाके की उपजाऊ मिट्टी इसीलिए इतनी उर्वर है, क्योंकि इसमें लाखों भगत सिंहों और अशफाकों के शरीर का नमक मिला है. किस तानाशाह में इतना गूदा है कि वह करोड़ों हिंदुस्तानियों की खुशबू से बनी मिट्टी से उसकी पहचान पूछ ले? किस तानाशाह में इतनी हिम्मत है कि वह करोड़ों पुरखों की कब्रों को पाकिस्तान भेज देने की मंशा जाहिर करे.

अगर ऐसा करने की किसी ने जुर्रत की तो हम इसी देश की माटी से उसका वाचाल और झूठ उगलने वाला मुंह बंद कर देंगे. यह देश हमने बनाया है, तुमको सरकार हमने बनाया है, हमीं से हमारी नागरिकता पूछ रहे हो? हमीं से मजहब के आधार पर भेद करने का दुस्साहस कर रहे हो? यह दुस्साहस महंगा पड़ेगा हुजूर!
हम उस समाज के लोग हैं कि हमारे घर जाओ, दस किलोमीटर दूर हमारे किसान पिता का नाम पूछ लेना, कोई भी बता देगा. तुम हमारी नागरिकता क्या पूछ रहे हो? चलो निकलो यहां से!
-Written by Krishna Kant

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