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लखनऊ : (घंटाघर) आज होली के दिन। बड़े अब्सोस के,साथ कहना पड़ रहा है। की आज हमने होली नहीं मनाई , क्योंकि आज भी माँ बहन बेटियां सब धरने पर बैठी हैं।और दिल्ली में अभी कुछ दिन पहले ख़ून की होली खेली गई, कितने बेसहारा होगय। किसी की माँ मारी, किसी का भाई मारा गया, किसी का बाप मारा गया। यह अब कैसा कानून लाया जा रहा है। कि लोगों की जान की क़ीमत कुछ भी नहीं रहें गई। ये कैसी सरकार आगई तानासाही जैसी। क्या यह सरकार को यहां भी नहीं दिखाई पड़ता कि माँ बहन बेटियां भयंकर आंधी पानी और ओले की बीच में बैठी हुई है। किया इसीलिए ये सरकार बार-बार कहती थी। सबका साथ सबका विस्वास होगा।
यह कैसा विस्वास है। जो इंसानियत का दुश्मन बन बैठे है। और यह भी याद कीजिये इस भारत देश में सभी की क़ुर्बनाया शामिल है वो चाहये हिन्दू हो यह मुस्लम। सिख हो यह ईसाई।आपस में मिलकर अंग्रजों को मार-मार भगाया था। और अंग्रेज भाग खड़े हुवे तब कहीं जाकर हमारा भारत देश,आजाद हुवा। और तब फिर कही जाकर सविंधान का गाँठन होवा और आज उसी सविंधान के दायरे में राहकर हम सब भाई – भाई। एक साथ है। और संविधान बचाना हम सब लोगों का कर्तव्य है। जय हिंद जय भारत।
– Virendra Gupta
नस्लवादी कानून के खिलाफ चल रहे आंदोलन को अब नई दिशा देने की जरूरत है।
अब धरनो का दायरा लांघते हुए इस आंदोलन को गांव देहात की तरफ निकला जाए, छोटे कस्बों और शहरों की तरफ निकला जाए, और आंदोलन को घर-घर तक पहुंचाया जाए, गांव स्तर पर ब्लॉक स्तर पर शहर स्तर पर कमेटी बने और वह कमेटी जन-जन तक एनपीआर, एनआरसी, सीएए के नुकसान से लोगों को परिचित कराए। इन कमेटियों में हर समाज हर वर्ग हर धर्म जाति के लोगों को शामिल किया जाए और सबको अपने अपने समाज वर्ग जाति के लोगों में जागरूकता फैलाने का काम सौंपा जाए। देश का एक बड़ा वर्ग सिर्फ यही समझ रहा है कि सीएए नागरिकता देने का कानून है, और यह उन अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश से आए हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी, ईसाई समुदाय के लोगो को नागरिकता देने का क़ानून है।
लेकिन भारतीय मुसलमान उसका विरोध कर रहे हैं। उन्हें बताया जाए कि मुसलमान किसी को भी नागरिकता देने के खिलाफ नहीं हैं, बल्कि वे इसका विरोध इसलिए कर रहे हैं क्योंकि नागरिकता देने का आधार सरकार ने धर्म को बनाया गया है, और उसमें भी मुसलमानों को छोड़ दिया गया है। सबसे पहले बहुसंख्यक वर्ग के इस भ्रम को दूर किया जाए मुसलमान किसी को नागरिकता देने का विरोध कर रहे हैं। यह तभी होगा जब इस आंदोलन में हर धर्म हर जाति हर वर्ग के लोगों को जोड़ा जाएगा। बेशक CAA विरोधी आंदोलन में हर वर्ग के लोगों बुद्धिजीवियों, एक्टिविस्टों नेताओं ने हिस्सा लिया है, लेकिन उनके साथ उनके वर्ग, जाति धर्म के लोग बहुत कम नज़र आए। इसलिए अब वक्त आ गया है कि धरनों के दायरो को तोड़ते हुए इस आंदोलन को देश के हर घर तक ले जाया जाए।