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स्वास्थ्य कर्मियों व प्रशासन पर हमले रासुका सिर्फ मुसलमानों पर, कारवाही में भेदभाव क्यों?
नई दिल्ली : देश में सांप्रदायिक ज़हर घोलने में मीडिया काई हद तक कामियाब हो चुकी है. एक साल से पायल तडवी को न्याय नहीं दिला पाने वाले 12 घंटे में महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे से दो साधू और एक ड्राईवर की मोब लिंचिंग पर इस्तीफा मांग रहे है. अखलाख, पहलू खान, जैसे सैकड़ों मोब लिंचिंग पर आरोपियों को फूलों क माला पहनाकर उनका स्वागत कर हौसला बढाने वाले देशभर के लोग भी इसमें शामिल है. मतलब साफ़ है न्याय की मांग नहीं धर्म देखकर सज़ा की मांग क जा रही है. जिसके चलते देश की छवि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खराब हो रही है और देश के पीएम मोदीजी को इन सांप्रदायिक तत्वों की वजह से शर्मिन्दा होना पडरहा है.
आदिवासी आन्दोलन के नेता हिमांशु कुमार आबिद मालिक को समर्थन करते हुए एक पोस्ट साझा करते है, इंदौर, चम्पारण, पटियाला, भोपाल, मोतिहारी, बेगूसराय, जहानाबाद, नालंदा, औरंगाबाद, वाराणसी, फ़िरोज़ाबाद व मेरठ सहित दर्जनों शहरों में हिंदुओं के अराजक भाइयों द्वारा डॉक्टर टीम्स और प्रशासन पर जानलेवा हमले किए गए लेकिन मेनस्ट्रीम मीडिया में कोई ख़बर दिखी?
कोई सख़्त करवाई हुई या 323 लगाकर रफ़ा दफ़ा कर दिया? जबकि उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में डॉक्टर्स पर पथराव के आरोप में प्रशासन ने मुस्लिमों पर एनएसए लगा दिया गया? क्या यही धर्मनिरपेक्ष सेकुलरिज़्म है ?
जब क़ानून की नज़र में क़ानून को तोड़ने वाला हर व्यक्ति गुनाहगार है तब भी वन-साइडेड कार्यवाही की जा रही है, क्या यही आदर्श क़ानून व्यवस्था है ? यानी अपराधियो का भी धर्म देखकर करवाई होगी?
मुरादाबाद हमले में पूरे मुस्लिम समाज से जवाब मांगा जा रहा है जबकि इंदौर, चम्पारण, पटियाला, भोपाल, मोतिहारी, बेगूसराय, जहानाबाद, नालंदा, औरंगाबाद, वाराणसी, फ़िरोज़ाबाद, मेरठ इत्यादि जगहों पर हिन्दू समाज जवाब देगा? या ये कह दिया जाएगा कि क़ानून अपना काम करेगा?
-Abid Malik
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