जिस हैवानियत के साथ 9 साल की दलित बच्ची पर देश की राजधानी में बलात्कर हुआ उससे साफ दिखता है कि हमारी सरकार ने और समाज ने भी हाथरस की घटना से कोई सबक नहीं लिया। जब तक जातीवादी और मर्दवादी सोच के खात्मे के लिए हम संकल्पबद्ध नहीं होंगे तब तक न जाने कितनी गुड़ियाओं को खोना पड़ेगा।
भाजपा और RSS के लोग जब निर्भया की घटना हुई तो पूरे देश में आंदोलन कर रहे थे, हाथ में मोमबत्ती लेकर हम भी खड़े थे ! लेकिन बात जब किसी दलित बेटी की आती है (चाहे वह हाथरस, कठुआ की पीड़िता हो या दिल्ली की गुड़िया) तब ज्यादातर लोग खामोश रहते है। यही है भारत का असली चरित्र।
NCRB (नेशनल क्राईम रेकॉर्ड ब्युरो ) के आंकडो के मुताबिक भारत में हररोज 4 दलित बहनों पर बलात्कार होता है। लेकिन भारत माता की जय का नारा लगानेवाले लोग न न्याय के लिए कभी दलितों या आदिवासियो के पक्ष के में खडे रहते है ना अपनी भगिनी संस्था दुर्गावाहिनी को भी बोलते है कि दिखावे के लिए ही एक दिन का धरना प्रदर्शन रख दो। कहने का तात्पर्य यह है कि मीडिया, पोलटिकल पार्टियां और समाज और तथाकथित प्रगतिशील आंदोलनजीवी तक दलित – आदिवासी बहनों के मामलों में चुप्पी साधते है।
इस प्रकार की घटनाओं के वक्त मीडिया के कैमरे लगे हो तब फोटो खिंचवाना बहुत आसान है, लेकिन लगातार बहनों के आत्मसन्मान के लिए लड़ना, उन पर होते हर उत्पीडन को लेकर संवेदनशील होना मुश्किल है।
उम्मीद है की सामूहिक बलात्कर का शिकार बनी दलित की बेटी गुड़िया को न्याय मिले और केवल दलित नहीं, पूरा देश पीड़ितो के साथ खड़ा रहे।
@जिग्नेश मेवानी