सवर्णों का अपराधीकरण: एक समाजशास्त्रीय अध्ययन की रूपरेखा

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सवर्णों का अपराधीकरण: एक समाजशास्त्रीय अध्ययन की रूपरेखा। 
बिहार और यूपी में आप इस समय 100 टॉप डॉन की लिस्ट बनाएँ। अगर उनमें एक भी दलित, पिछड़ा या मुसलमान नाम नज़र आए तो कमेंट में बताएँ। 




मेरी लिस्ट में ये पूरी की पूरी हिंदू सवर्ण कटेगरी है। बाक़ी जातियों के गुंडे टॉप पर पहुँचने से पहले मारे जाते हैं या जेल में बंद हो जाते हैं। मुसलमान डॉन की भी यही कहानी है। शायद ही कोई जेल से बाहर हो। इसलिए इन समाजों में क़ानून का इक़बाल है। 
लंबे समय से जारी सवर्ण तुष्टीकरण से सवर्ण समाज का एक हिस्सा बेलगाम हो गया है। उनमें क़ानून का ख़ौफ़ नहीं है। प्रशासन, मीडिया, न्यायपालिका हर जगह उसे अपनी जाति के लोग नज़र आते हैं। उन्हें लगता है कि वे कुछ भी करके बच जाएँगे। सवर्णों के बीच क़ानून का इक़बाल ख़त्म हो चुका है। 




जैसे इटली के माफिया ने 20वीं सदी की शुरुआत में अमेरिका के अपराध जगत रियल एस्टेट, जुआ, नशा, वेश्यालयों, कसीनो, ठेकों पर क़ब्ज़ा कर लिया था, वही अब उत्तर भारत के सवर्ण डॉन कर रहे हैं। अपराध और राजनीति का कॉकटेल दोनों मामलों में है। 
इसकी जड़ में ये ये भाव कि अपने लोग सब जगह मौजूद हैं। हमारा कोई क्या बिगाड़ लेगा।  लेकिन वे अब अपने लोगों को भी खाने लगे हैं। इसलिए थोड़ा-बहुत शोर मच रहा है। 




हर शहर में आपको विकास दुबे मिल जाएँगे। ये स्थायी अपराधी नहीं होते। अक्सर अपने बच्चों को अपराध से दूर महानगरों या विदेशों में पढ़ाते हैं। अगली पीढ़ी में ये अपराधी परिवार सम्मानित बन चुका होता है। इनका पड़ाव राजनीति भी है। सवर्ण जातियों के अपराधीकरण का समाजशास्त्रीय अध्ययन होना चाहिए।
नोट -लेखक दिलीप मंडल वरिष्ठ प्रकार है, यह उनके निजी विचार है.

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