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एक हरी-भरी पहाड़ी पर एक वैरागी रहा करता था. उसकी आत्मा शुद्ध और ह्रदय निर्मल था. वन के पशु और आकाश के पक्षी सभी जोड़े-जोड़े उसके पास आते और वह उन्हें उपदेश दिया करता. वे उसकी बातों में खूब रस लेते, उसे घेरकर बैठ जाते और बड़ी रात तक हिलने का नाम भी न लेते, तब वह स्वयं ही जाने की आज्ञा देकर उन्हें अपने आशीर्वाद के साथ वायु और जंगल के भरोसे सौंप देता.
एक दिन संध्या के समय, जब वह प्रेम के सम्बन्ध में उपदेश कर रहा था, एक तेंदुए ने सिर उठाकर वैरागी से पूछा, “जी, आप हमसे प्रेम की चर्चा तो कर ही रहे हैं, लेकिन यह तो बताइए कि आप कि प्रेयसी कहाँ है?”
वैरागी ने उत्तर दिया, “ मेरी कोई प्रेयसी नहीं है.”
इसपर पशु-पक्षी के झुण्ड में आश्चर्य का कोलाहल गूँज उठा. वे आपस में कहने लगे, “भला, वह हमें प्रेम और दाम्पत्य जीवन के सम्बन्ध में क्या उपदेश कर सकता है, जब वह स्वयं इस विषय में कोरा है?” वे चुपचाप अवज्ञा भरे भाव से उठकर उसे अकेला छोड़कर चल दिये.
वह वैरागी सारी रात अपने बिस्तर पर औंधे मुंह पड़ा बुरी तरह रोता और छाती पीटता रहा।
(डिस्क्लेमर : यह कहानी बहुत पहले लिखी गई। इसका वर्तमान में किसी की बातों से कोई संबंध नहीं।)
वैरागी और वन के पशु
–खलील जिब्रान