विभाजन के बाद के सबसे बड़े आंतरिक विस्थापन से गुज़रता भारत

India going through the biggest internal displacement after partition
SD24 News Network· 
विभाजन के बाद के सबसे बड़े आंतरिक विस्थापन से गुज़रता भारत
मैंने फ्रांस की राज्यक्रांति और उसके बाद पैदा हुई आराजकता नहीं देखी । मैंने अमेरिका का गृहयुद्ध और उसके बाद का रक्तरंजित इतिहास नहीं देखा । मैंने 1857 का ग़दर, आज़ादी और विभाजन के बाद पैदा हुए विस्थापन का दर्द भी नहीं देखा । मैंने बंगाल के अकाल और लाशों से पटी सड़कों के सिर्फ विवरण पढे हैं – देखा नहीं.लेकिन जो मैं देख रहा हूं वह इन घटनाओं से किसी तरह से कमतर नहीं ।

भारत आज़ादी के बाद के सबसे बड़े आंतरिक विस्थापन से गुज़र रहा है । त्रासदी की जिन कहानियों को हमने इतिहास की किताबों में पढ़ा है । वो नंगे पांव सड़कों पर रेंग रही हैं. उन्हीं सड़कों पर जिन्हें गरीबों के पैसे से, अमीरों के लिए बनाया गया हैं ।
लूट की इन सड़कों पर दुख, हताशा, बेचारगी के काफिले ग़ुजर रहे हैं । इन सबके बीच, देश का मध्यवर्ग खुद को “क्वारन्टाइन” करने में लगा है और प्रेस दलाली करने में ।
अफ़सोस मगर सच है कि एक आदमी की सनक ने, उसके अहंकार और पागलपन ने पिछले छह सालों मेें इस देश को गन्ने की तरह निचोड़ कर रख दिया है । भारत की आत्मा को कलुषित और उसकी देह को रोगग्रस्त बना दिया है ।

मैंने उन हताश आंखों में शहरी, संपन्न तबके के लिए एक अदृश्य मगर तीखी नफरत देखी है । सूखे हुए गालों और निस्तेज आंखों के पीछे बदला सुलग रहा है ।
कोरोना ने इस देश की धमनियों में पल रहे वर्ग-विभाजन को निकालकर, नंगा करके सड़कों पर ला खड़ा कर दिया है. मैं चाहता हूं कि ये धमनियां फट जाएं और ये इमारतें ध्वस्त हो जाएं जिन्हें बनाने वाले हाथ, उसी की छाया तले भूख में तड़पने के लिए मज़बूर हैं ।
-Vishwa Deepak

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