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वर्तमान भारत के शासक – स्वार्थी, लालची और एहसान फरामोश है
लीखने से पहले माफ़ी मांग लेता हूँ, हो सकता है आप लोगों तो बुरा लगे. हो सकता है आप लोगों को गुस्सा आ जाए. गुस्से में कहीं पत्थर ना मारने लगो ? अगर मुझे मारना ही है तो छोटे कंकड़ पत्थर मारना, सुना है उससे कम चोट लगती है कम पिराता है कम लाहू बहता है !
बौद्ध सभ्यता.
बौद्ध भिक्षु बनना कोई आसान नही था. ऐसा लगता है गरीब दीनहीन मजदूर के लिए बौद्ध विहारों का द्वार बंद था. बौद्ध मठों विहारों में दीक्षा देने से पहले कठोर सवालों से गुजरना पड़ता !
सवाल – क्या तुम अहर्ताका हो (बंधुआ मजदूर)
सवाल – क्या तुम विकृताका हो (बेचा ख़रीदा ग़ुलाम)
बंधुआ मजदूर और ग़ुलामो को दीक्षा देने इनकार कर दिया जाता. बौद्ध सभ्यता में मजदूर दो प्रकार के होते एक अहिताका, जिसे क़र्ज़ के कारण या युद्ध में ग़ुलाम बनाया गया. दूसरा उनदेरदसत्व, जो आज़ाद मजदूर होता.
आज़ाद मजदूर को भी भीक्षु बनने का अधिकार नही था. लेकिन उन्हें विहारों में कार्य करने के लिए रखा जा सकता था. अट्ठाइसवें बुद्ध तथागत बुद्ध ने बौद्ध सभ्यता में फैली कई गलत प्रथाओं का विरोध किया. बुद्ध की महाक्रांति ने भीक्षु बनने का द्वार मजदूर के लिए खोल दिया, वह बुद्ध ही थे जिन्होंने पहली बार विहारों में महिलाओं को दीक्षा देने की शुरवात की !
वैदिक काल.
ऋग्वेदा कहता है क़र्ज़ तले दबा इंसान और युद्ध में जीता हुआ इंसान को गुलाम बनाया जा सकता है. मनुस्मृति ने तो बहुसंख्यक आबादी को गुलाम घोषित कर दिया, जिनका सिर्फ एक दायित्व है ऊपर के तीन वर्णो की सेवा करना. शिक्षा संपत्ति ज़मीन से वंचित रखा.
कानून इतना अमानवीय था कि शूद्र ब्राह्मण स्त्री का बलात्कार करने पर मौत और ब्राह्मण द्वारा शूद्र स्त्री से बलात्कार करने पर माफ़ी का प्रबंध किया. राम राज में तो सड़कों पर ग़ुलाम बिका करते थे, कोई भी मोल भव कर स्त्री या पुरुष को खरीद सकता था, कोई राजा की बेटी तो बिकी नही होगी, गरीब की बेटी ही बिकी होगी !
मुस्लिम शासक और मुग़ल काल.
कहते हैं अलाउद्दीन खिलजी के पास 50,000 ग़ुलाम थे. और फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ के पास 1,80,000 ग़ुलाम थे जिनमें 12,000 कुशल कारीगर थे. मुग़ल साम्राज्य हो या क्षत्रिय राजा हो युद्ध जितने पर पराजित हुए राज्य की स्त्री पुरुष बच्चों को गुलाम या बंधुआ मजदूरी के दलदल में धकेल दिया जाता !
इतिहास में राजा ने लिखा लिखवाया इसी कारण इतिहास में राजा महान है, भारत सोने की चिड़िया है. दूध की गंगा बहती है लेकिन मैं इस सब चक्कर में नही फंसने वाला. संविधान लोकतंत्र संसद भवन के रहते जब वर्त्तमान इतना कष्टदायाक है तो इतिहास बहुत अमानवीय रहा होगा….
वर्त्तमान भारत के शासक – स्वार्थी, लालची और एहसान फ़रामोश है. महामारी और महामंदी का बहाना बनाकर हर राज्य ने लेबर कानून को खत्म कर मजदुर श्रमिकों को गुलाम तथा बंधुआ मजदूर बना दिया. योगी ने तो 95% लेबर कानून खत्म कर केंद्र को अप्रूवल के लिए भेज दिया है !
जैसे सोने की चिड़िया दूध की नदी जैसी कहानी झूठी है, उसी तरह राजनीतिक दलों यह भी कहानी झूठी है कि कड़े लेबर कानून विकास और निवेश में बाधा उत्पन्न करते हैं. अगर ऐसा होता तो अमेरिका और यूरोप आज गरीब मुल्क होते क्यों की वहां पर लेबर कानून स्टील की तरह मजबूत और चमड़े की तरह सख्त हैं !
अब आप मुझे कंकड़ पत्थर मार सकते हैं !
(लेखक के निजी विचार, तमाम आपत्ति और दावों के लिए लेखक Kranti Kumar जिम्मेदार)