महाराष्ट्र विधानसभा में वंचित बहुजन आघाडी और AIMIM का गठबंधन टूट गया! इसकी घोषणा MIM प्रदेश अध्यक्ष सांसद इम्तियाज़ जलील ने कर दी है। सामाजिक न्याय के आधार पर अल्पसंख्यकों, वंचितों, को राजनीतिक शक्ति देने के लिए लोकसभा चुनाव के समय बना यह गठबंधन टूटना दुर्भाग्य पूर्ण है; लेकिन जिस तरह भूमिका प्रकाश आंबेडकर ने अपनाई थी, उसका नतीजा यही होना था…! महाराष्ट्र विधानसभा में कुल 288 सीटें हैं जिसमें आंबेडकर सिर्फ 8 सीटें MIM को देना चाहते थे! जबकि 2014 के चुनाव चुनाव में MIM अकेले 24 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 2 पर जीत हासिल कर 9 सीटों पर दूसरे/तीसरे नंबर रही थी। उसके बाद पिछले 5 सालों में पार्टी ने काफी मेहनत की और जमीनी स्तर पर पार्टी को बढ़ाया है। नतीजन, नगर परिषद नगर निगम में पार्टी के 150 नगरसेवक जीते हैं । इस बार आंबेडकर से गठबंधन होने से उम्मीद थी कि MIM कमसकम 50 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है। जब चुनावी बातचीत का दौर शुरू हुआ तो MIM ने पहले 100 सीटें मांगी और बाद में खुद ही इसे घटाकर 74 सीटों की मांग रखी; लेकिन आंबेडकर ने अप्रत्याशित रूप से MIM को सिर्फ 8 सीटें छोड़ने की इच्छा जताकर MIM सहित सबको हैरत में डाल दिया!
इन 8 सीटों में भी औरंगाबाद मध्य की सीट शामिल नही थी जिसपर 2014 में इम्तियाज जलील जीते थे!! आंबेडकर ने एक और शर्त रखी थी कि MIM किसी भी दलित को अपनी पार्टी का प्रत्याशी नहीं बनाएगी और ना ही उसे वह सीटें दी जाएगी जो अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं! जबकि MiM ने आंबेडकर से गठबंधन करने से पहले ‘जय भीम जय मीम’ का नारा दे रखा है। MiM के पास हैदराबाद नगर निगम में भी दलित पार्षद हैं और महाराष्ट्र के विभिन्न नगर परिषद/निगम में भी! औरंगाबाद नगर निगम में MiM मुख्य विपक्षी दल है और नेता विपक्ष भी दलित है और पार्टी के गुट नेता (Leader of House) भी दलित ही है। ऐसे में यह असंभव है कि MiM किसी दलित को टिकट ना दें!
लोकसभा चुनाव के समय आंबेडकर चाहते थे कि MiM कुछ सीटों पर चुनाव लड़े; मगर ओवैसी ने लोकसभा चुनाव लड़ने से साफ मना कर दिया था। लेकिन बाद में औरंगाबाद जिले के कार्यकर्ताओं के काफी अनुरोध के बाद ओवैसी सिर्फ एक सीट लड़ने पर राजी हुए थे। तब आंबेडकर ने कहा था कि भले ही लोकसभा चुनाव में MiM अधिक सीटों पर चुनाव नहीं लड़ रही है; लेकिन आने वाले विधानसभा चुनाव में वे यानी MiM जितनी भी सीटों की मांग करेंगे,मैं मंजूरी दे दूंगा, यह तक नही पूछुंगा की वह सीटें कौन सी हैं!! लेकिन विधानसभा चुनाव के आते आते आंबेडकर साहब ने पूरा ‘यू टर्न’ ले लिया! अब वह MiM के लिए उसी भूमिका में आ गए हैं जो भूमिका पिछले 70 सालों से खांग्रेस सहित सभी तथाकथित सेक्यूलर दल निभाते आए हैं मुसलमानों के लिए!
आंबेडकर भी MiM को ‘अल्पसंख्यक सेल’ की निगाह से देख रहे हैं, इसीलिए उन्होंने सिर्फ़ 8 सीटें इस शर्त के साथ छोड़ने की बात कही है कि MiM सिर्फ मुसलमानों को प्रत्याशी बनाएगी..!! यानी कि खांग्रेस और दूसरे तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दलों की तरह प्रकाश आंबेडकर भी मुसलमानों का राजनीतिक अस्तित्व नहीं देखना चाहते और थोड़ा सा दिल दिखा भी रहे हैं तो वह इस शर्त पर कि आप अल्पसंख्यक सेल की तरह सीमित रहो..!!
खैर, जो हुआ सो हुआ। इस मामले में आंबेडकर पर कटु टिप्पणियां करने से बचिए। क्योंकि उन्होंने वही भूमिका अपनाई है जो भूमिका खांग्रेस-NCP अपनाती आई है। जब आपको खांग्रेस-NCP से कोई दिक्कत नहीं तो आंबेडकर पर नाराज़ होने का अधिकार आपको नहीं है। खांग्रेस-NCP को तो आप वोट देते आए हैं, उनसे तो आप ने कोई उम्मीद नहीं रखी सिवाय भाजपा को हराने के! फिर आंबेडकर को तो आप ने वोट भी नहीं दिया!!
आंबेडकर की भूमिका के पीछे एक कारण यह हो सकता है कि ओवैसी की बड़ी बड़ी सभाएं और गला फाड़कर अपील करने के बाद भी महाराष्ट्र के मुसलमानों ने लोकसभा चुनाव में वंचित बहुजन आघाडी का साथ ना देकर पारंपरिक रूप से खांग्रेस-NCP को ही वोट दिया। यहां तक कि जहां खुद प्रकाश आंबेडकर प्रत्याशी थे, उस सोलापूर सीट पर भी मुसलमानों ने आंबेडकर के बजाए मुसलमानों की दुश्मन पार्टी खांग्रेस को ही वोट दिया..!! इसलिए, यह गठबंधन टूटने या आंबेडकर द्वारा MIM को नजरअंदाज किये जाने के मामले में एक कारण यह भी है कि जब मुसलमान ही अपने नेता के पीछे नहीं है तो उनकी पार्टी से गठबंधन कर क्या फायदा!! हर नेता के पीछे पहले उसका समाज मज़बूती से खड़ा होता है, उसके बाद दुनिया उसका लोहा मानती है…!! मुसलमानों के मुद्दों पर लोकसभा में ओवैसी चिल्लाए, जनसभाओं में ओवैसी चिल्लाए, स्टूडियो में ओवैसी चिल्लाए.. हर मुद्दे पर ओवैसी चिल्लाए और चुनाव आते ही तुम्हे खांग्रेस नज़र आए, तो यह दोष आपकी नजर का नहीं है,
बल्कि आपके दिमाग का है, आपकी नकारात्मक, मनहूस सोच का है..!! इसलिए, अब आंबेडकर को नहीं बल्कि अपनी मनहूसियत को कोसो! कोसो नहीं, बल्कि सुधार करो, राजनीतिक रूप से जागृत हो जाओ और अपनी पार्टी को बिना यह देखे/सोचे मज़बूत करो कि कौन जीत/हार रहा है.. पहले तुम तो ओवैसी को अपना नेता मानो, फिर दुनिया मानेगी! आंबेडकर की एक आवाज़ पर पूरा बुद्धिस्ट समाज एक हो गया, इसलिए दूसरे समाज के लोग भी उन्हें नेता कहने/मानने को मजबूर हैं! राजनीति में ख़ुशी से कुछ नहीं मिलता, अपने को साबित करना पड़ता है, तब जाकर सामने वाला देने को मजबूर हो जाता है… (जावेद पटेल की फेसबुक वाल से)
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