उमर इब्न साद कैसा था जिसने नेज़ों पे सिर बुलंद करने के लिए लाशों को खोद निकालने का हुक्म दे दिया?
या *इंसान का कलेजा चबा जाने वाली हिन्दा कैसी थी?
मैँ कहता हूं आंखें खोल के देखिए, अपने आस पास 6 महीने के बच्चे की जान लेने वाला हुर्मला भी दिखेगा और लाशें निकलवाने वाला इब्न साद भी और कलेजे चबाने वाली हिन्दा भी।
अब ताज़ा वाक़या देखिए…
उत्तराखंड ऊधम सिंह नगर फ़िरक़ापरस्ती की शानदार मिसाल कायम करते हुए अहले ईमान ने एक मुर्दे को दर बदर कर दिया।
मामला दरऊ गांव का है जहां उन्मादी भीड़ ने गुजराती पर्यटक की लाश क़ब्र खोद कर सिर्फ इसलिए निकाल दी क्योंकि मरहूम उनके फ़िरक़े का नहीं था।
ये काम गांव की मस्जिद के इमाम की देखरेख में हुआ।
बहरहाल ये डीएनए का खोट माना जाये या तालीम का असर?
ये क़बाइली सोच दो ही तबक़ों में मिलेगी…
या तो जो इस्लाम के दायरे में आए और इस्लाम को समझ नहीं पाए या फिर वो जो सनान इब्न अनस, उमर इब्न साद, हसीन इब्न नमीर और इब्न ज़ेयाद जैसों में इस्लाम तलाशते हैं।
क़ब्रिस्तान अगर निजी नहीं है तो गोर ए ग़रीबां ही होता है यानी सार्वजनिक।
जैसे मस्जिद किसी के बाप की जागीर नहीं है वैसे ही क़ब्रिस्तान भी किसी के बाप की विरासत नहीं है।
लेकिन ये बातें कौन समझाएगा? मुल्ला..? वही जो आपको फ़िरक़ा बता रहा है मगर इस्लाम के बुनियादी उसूल नहीं?
बहरहाल ज़लील हरकत करने वालों के हिस्से अल्लाह कभी इज़्ज़तें नहीं देता, फिर आप चाहे जिस फ़िरक़े से हों।
ये जो रुसवाईयाँ हैं इनमे आपके आमाल और किरदार की बरकत भी शामिल है। और अगर नहीं सुधरे तो आपके हाल सुधरने वाले नहीं हैं।
अल्लाह अल्लाह ख़ैर सल्लाह।