रिपोर्ट : महाराष्ट्र की सरकार गिराने का खेला जा रहा है खेल, बांद्रा और पालघर से शुरुआत

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मुंबई : महाराष्ट्र के इतिहास में अबतक जो कभ नहीं हुआ वह सबकुछ अब होता दिखाई दे रहा है । भीड़ …. अचानक मुंबई के बांद्रा स्टेशन पर भीड़ का जामा होना, उसके बाद जहरीली मीडिया द्वारा स्टेशन को मस्जिद बताकर सांप्रदायिक रंग देना, और सरकार को बदनाम करना । गौरतलब हो के गुजरात के सूरत में, दिल्ली में, उत्तर प्रदेश सहित देशभर में लाखो मजदूरों की भीड़ इकठ्ठा होती है और मीडिया मौन हो जाता है मानो जैसे सड़कें सुनसान ह ।

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दूसरा मुद्दा पालघर मोब लिंचंग का । पालघर में दो साधुओं और एक ड्राईवर की भीड़ द्वारा मोब लिंचिन कर दी गयी है । कई दिनों से सोशल मीडिया पर आफवाह फैलाई जा रही थी के मुसलमान साधुओं के भेस में बच्चे चुराने कोरोना से संक्रमित करने के लिए घूम रहे है । इस अफवाह के चलते मुंबई के पालघर में जो अमानवीय शर्मनाक घटना घटी । भीड़ द्वारा सैकड़ों मुसलमानों की हत्याएं हो चुकी है लेकिन इससे महाराष्ट्र अछूता था । गौर्ताब हो की तरबे अंसारी पहलुखान की लिंच करने वाले भीड़ के लीडर को बीजेपी विधायक ने उलों की माला पहनाकर मिठाईयां बांटी थी । NCP प्रवक्ता के अनुसार संतो की मोब लिंचिंग में गिरफ्तार अपराधियों इ सबसे ज़्यादा बीजेप के लोग है । और यही लोग मुसलमान पर बिल फाड़ने लगे हा । जिससे हिन्दू मुस्लिम फसाद की संभावना ज़ताई जा रही है ।  

क्या महाराष्ट्र में एक बार फिर राज्यपाल की भूमिका को लेकर राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का खेल शुरू होने वाला है? क्या मध्य प्रदेश, कर्नाटक की तरह यहां भी ‘ऑपरेशन लोटस’ को अंजाम दिए जाने की तैयारी चल रही है। वह भी ऐसे समय में जब देश कोरोना का संकट झेल रहा है ।

पिछले कई सालों से राज्यों में सत्ता बनाने-बिगाड़ने के खेल में राज्यपालों की विवादास्पद भूमिकाओं के अनेक रूप देश की जनता देख रही है। ऐसा ही कुछ खेल क्या एक बार फिर से महाराष्ट्र में देखने को मिलेगा?
महाराष्ट्र में क़रीब छह माह पूर्व किस तरह राष्ट्रपति शासन लगा, रातों-रात किस तरह उसे हटाया गया, पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने एनसीपी के नेता अजित पवार से जोड़-तोड़ कर सरकार बनायी और बहुमत हासिल नहीं करने के बाद दो दिन में वह सरकार धराशाही भी हो गयी, यह सारा राजनीतिक तमाशा महाराष्ट्र के साथ पूरे देश ने देखा था। 
इस तमाशे में राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी की भूमिका पर तमाम सवाल भी खड़े हुए थे। अब फिर प्रदेश की सत्ता को लेकर एक अहम फ़ैसला राज्यपाल के हाथों में है, और वह है उद्धव ठाकरे को विधान परिषद का सदस्य मनोनीत किया जाना। यह फ़ैसला राज्यपाल के स्व-विवेक के दायरे में आता है । और जब भी बात स्व-विवेक की होती है तो यह स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है कि, राज्यपाल केंद्र की तत्कालीन सरकारों के इशारे पर अपने निर्णय देते रहे हैं। 
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सवाल यही है कि क्या राज्यपाल कोश्यारी मंत्रिमंडल की वह सिफारिश जिसमें उद्धव ठाकरे को विधान परिषद का सदस्य मनोनीत करने की बात कही गयी है, उसे आसानी से स्वीकार कर लेंगे? या इस मामले में भी वह केंद्र से मिलने वाले संकेतों के मुताबिक़ फ़ैसला लेंगे। यह प्रस्ताव राज्यपाल को भेजे हुए काफी दिन बीत गए हैं लेकिन अभी तक उन्होंने कोई फ़ैसला नहीं लिया है। 

महाराष्ट्र में चर्चाओं का दौर गर्म है और ऐसे में एक बीजेपी नेता ने इस मामले को अदालत में चुनौती तक दे डाली है और मंत्रिमंडल के प्रस्ताव को ही नियम विरुद्ध बताते हुए इसे खारिज करने की मांग की है। इस दौरान देवेंद्र फडणवीस की राजभवन में आवाजाही भी अनेक चर्चाओं को जन्म देने लगी हैं। ऐसे मौक़े पर शिवसेना सांसद संजय राउत ने बड़ा आरोप लगाया है। 

राउत ने ट्वीट कर कहा, ‘राजभवन षड्यंत्र का केंद्र नहीं बने, याद रखिये इतिहास उन्हें कभी नहीं छोड़ता जो असंवैधानिक काम करते हैं।’ राउत ने ट्वीट में ठाकुर रामलाल का जिक्र किया और कहा कि समझने वालों के लिए इशारा काफी है। ठाकुर रामलाल 1983-84 के बीच आंध्र प्रदेश के राज्यपाल रहे थे। उनके एक फ़ैसले के बाद वहां की राजनीति में तब भूचाल आ गया था, जब उन्होंने बहुमत वाली एन.टी. रामा राव की सरकार को बर्ख़ास्त कर दिया था। 
दरअसल, महाराष्ट्र में 24 अप्रैल को विधान परिषद की खाली हो रही 9 सीटों के चुनाव होने थे। लेकिन कोरोना वायरस के संक्रमण से पैदा हुए संकट के चलते स्थितियां पूरी तरह बदल गई हैं।
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देशव्यापी लॉकडाउन के चलते चुनाव आयोग ने चुनाव टाल दिए। ऐसे में फिलहाल ठाकरे विधान परिषद के सदस्य नहीं बन सकते तो राज्य मंत्रिमंडल ने एक प्रस्ताव पारित कर राज्यपाल कोटे की दो सीटों में से एक सीट पर उद्धव ठाकरे को विधान परिषद का सदस्य मनोनीत किए जाने की सिफारिश राज्यपाल कोश्यारी को भेज दी। लेकिन कोश्यारी ने अब तक इस पर फ़ैसला नहीं लिया है। 

अगर राज्यपाल ने सिफारिश को स्वीकार नहीं किया तो ठाकरे को इस्तीफ़ा देना होगा और उनका इस्तीफ़ा पूरे मंत्रिपरिषद का इस्तीफ़ा माना जाएगा। ऐसी स्थिति में अगर राज्य में कोई नई राजनीतिक जोड़-तोड़ नहीं होती है और ठाकरे की अगुवाई वाला मौजूदा गठबंधन अटूट रहता है तो वे अपने मंत्रिपरिषद के साथ दोबारा मुख्यमंत्री पद की शपथ ले सकेंगे। 

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