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रवीश कुमार द्वारा “जाति” पूछने के सवाल पर अक्सर कइयों को आपत्ति जताते हुए देखा है। कइयों लोग इसी आधार पर रवीश को जातिवादी भी कहते हैं। एक घटना बताता हूँ मैं एक दिन रवीश की “फूलपुर चुनाव की रिपोर्ट” देख रहा था।
एक कथित ऊंची जाति के एक बुजुर्ग की चारपाई पर रवीश बैठे हुए थे। रवीश की बगल में दो चारपाई बिछी हुईं थीं। जिनपर 15 से लेकर 20-25 की उमर वाले लड़के बैठे हुए थे। चुनावों में कौन जीतेगा, कौन हारेगा इसपर बातचीत हो ही रही थी, तभी बीच बातचीत में एक अलसाये से बुजुर्ग चले आते हैं, जैसे कि बहुत ही थके हुए हों। चारपाई खाली होने के बावजूद वे चारपाई के सामने नीचे धरती पर ही बैठ जाते हैं। खाली चारपाई और नीचे जमीन पर बैठे बुजुर्ग को देखकर रवीश असहज हो जाते हैं। रवीश उन बुजुर्ग को बार बार ऊपर चारपाई पर बैठने के लिए कहते हैं। लाख कहने के बावजूद बुजुर्ग चारपाई पर नहीं बैठते है.
इसपर रवीश कुछ नाखुश होते हैं, और चारपाई पर बैठे ऊंची जाति के बुजुर्ग से कहते हैं कि या तो आप इनसे कहकर इन्हें ऊपर चारपाई पर बिठाइए या मैं अभी यहां से उठकर जाता हूँ। थके हुए से बुजुर्ग असहज होते हैं फिर चारपाई के एक कौनें पर आकर बैठ जाते हैं। चारपाई का वह कौना ही आधे हिंदुस्तान का नक्शा था. रवीश उस बुजुर्ग से पूछते हैं “कौन जात हो बाबा”
इतना कौन नहीं जान पा रहा होगा कि बुजुर्ग किस जाति होंगे. रवीश भी जानते ही होंगे कि किस जाति, किस वर्ग से वह बुजुर्ग आते होंगे। लेकिन इक्कीसवी सदी के भारत की वह मध्यकालीन तस्वीर देश को दिख सके इसलिए जाति का सवाल रवीश ने पूछा।
एक ऐसे समाज में जहाँ 100 वर्गगज के एक मकान में एक छोटा सा कमरा देने से पहले लोग कास्ट पूछते हों। एक ऐसे देश में जहां नौकरी देते समय सरनेमों को प्रिविलेज दिया जाता हो। एक ऐसे लोकतंत्र में जहां केस दर्ज करने से लेकर धाराएं लगाने तक में जाति का ध्यान रखा जाता हो तो वहां एक पत्रकार जाति के अर्थों को दिखाना चाहता है तो इसबात पर कोई आपत्ति कैसे हो सकती है? शतुरमुर्ग की तरह जमीन में सर घुसाकर मानवीय संकटों से मुक्त नहीं हुआ जा सकता.
इस देश में घरों और बस्तियों की संरचनाएं तक जाति के आधार पर रखी गई हैं कभी सोचा? कथित निम्न जातियों के घर गांव के कौनें में ही क्यों मिलते हैं? कभी सोचा है जब अपनी फसल कटवाने के मजदूर चाहिए होते हैं तो आप किस मोहल्ले में जाते हैं? कभी सोचा है किसी पशु के मरने के बाद आप किस जाति के लोगों के पास जाते हैं? किस जाति की औरत हाथ में लोहे की टीन की दो परते लेकर आपकी गलियों में सफाई के लिए आती हैं? आपको नहीं पता? क्या आपने कभी पूछा? नहीं न…!
तो इन्हीं सवालों का जबाव आपको रवीश के सवालों में मिल जाता है कि “कौन जात हो”
जो दूरी चारपाई पर बैठे बुजुर्ग और नीचे धरती पर बैठे इस बुजुर्ग के बीच में दिखाई दे रही है वह 3 हजार से अधिक वर्षों की दूरी है. इस दूरी का कोई भूगोल नहीं है, इतिहास है।
shyam meera singh