हाल के दिनों में बिहार और यूपी के लोगों ने जो सबसे बड़ा संकट झेला, वह था लॉकडाउन के दौरान पलायन. ये ऐसा संकट था जब लोग सबकुछ छोड़कर हजार-दो हजार किलोमीटर पैदल चलते हुए अपने घर लौटे और सैकड़ों लोगों ने रास्ते में ही जान गवां दी.
आज देश के प्रधानमंत्री ने बिहार में अपनी पहली रैली की. करीब 40 मिनट के भाषण में उन्होंने प्रवासी मजदूरों का या इस पलायन का एक बार भी नाम नहीं लिया.
उन्होंने एक बार शहरों में रेहड़ी पटरी वालों को कुछ सुविधाएं देने का जिक्र जरूर किया. लेकिन बिहार के शहरी/प्रवासी मजदूरों का कोई जिक्र नहीं किया. विकास की बातें कीं, कृषि में रोजगार बढ़ाने की भी बात कही, लेकिन बिहार के लोगों को बिहार में ही रोजगार मिले, इसके लिए कोई ठोस बात नहीं कही.
सीएम नीतीश कुमार को हमने कभी ये कहते नहीं सुना कि बिहार की कामगार आबादी के लिए बिहार में रोजगार मुहैया कराए जाएंगे. वे बिहार में उद्योगों की बात कभी नहीं करते. ले देकर मामला बिजली, पानी तक ही रहता है.
ऐसा लगता है कि जैसे 70 साल में गांवों में बिजली पहुंचाकर नेताओं ने जनता पर और देश पर बहुत भारी एहसान कर दिया है.
जाहिर है कि बिहार के गरीब लोग जो शहरों में खटते हैं, वे आगे भी खटते रहेंगे. फिर नेता लोग किस विकास की बातें करते हैं?
जनता नेता के लिए भावुक होती है, नेता जनता को सिर्फ वह सीढ़ी समझता है जिसके दम पर वह सिंहासन की सीढ़ियां चढ़ता है.