जब किसी फ्लाईट के कैप्टन को पता चलता होगा की यह हवाई जहाज बचा नहीं पाऊंगा तब वो क्या करता होगा?? यह सवाल और जिज्ञासा मुझे कई फ्लाईट एक्सिडेंट की इन्वेस्टिगेशन स्टोरी में हमेशा खींचता रहा है। 7 ऑगस्ट को केरला के कोझिकोड हवाई अड्डे पर हुए एक्सीडेंट में दुबई कोझिकोड एयर इंडिया एक्सप्रैस का संतुलन खो कर मलबा बन गया है। 190 यात्रियों में से लगभग आधे अरब ..दुबई में भी बेरोजगार हो चुके थे…कुछ लोग मुश्किल से पैसा जुगाड कर इस प्लाइट का टिकट काटे थे किसी को थोड़ी पता था कि इसी में जिन्दगी की भी टिकट कट जाएगी।
हमने अपने ही देश में हजारों किलोमीटर मजदूरों को चलते देखा..उनके साथ होनेवाले हादसे देखे…सड़कों पर बहा हुआ उनका खून और पार्टिशन के बाद का सबसे बड़ा मानवी विस्थापन देखा है।उसी कड़ी में यह एक्सीडेंट भी एक भीषण हादसा है।
कुछ जख्मी यात्री कह रहे है कि फ्लाईट कैप्टन ने अंतिम समय भी टेक ऑफ की पुरजोर कोशिश कि थीं …उन पलों में कोई कैप्टन क्या सोचता होगा..उसके दिमाग का आलम क्या होता होगा…उसकी प्राथमिकता क्या रहती होगी यह जानना बहुत जरूरी है ।
यह भी हादसा हमारे सिस्टम की भ्रष्ट होने के निशानी है यह रनवे टेबल टॉप रनवे है वो ख़तम होते ही 50 फिट कि गहरी खाई क्यू है?? क्यू उस खाई को भरा नहीं गया.. .जिन्होंने रास्ते ठिकसे नहीं बनाए उन्होंने ने ही रनवे भी ठीक नहीं बनाए.. ख़ैर अपने यहां जान की कीमत तो सिर्फ कुछ लोगों की होती है।