मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत और बहुसंख्यको का यक़ीन, दोनो इनके पास हैं, नतीजा सबके सामने है

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मुल्क आज़ाद हुआ तो साम्प्रदायिक शक्तियों ने धर्म का चोला ओढ़कर सत्ता हथियाने की कोशिशें शुरू की यानी धर्म के आधार पर मुसलमानों के ख़िलाफ़ देश के हिन्दुओं को वरगलाना और एकजुट करना चाहा लेकिन चूंकि देश ने इन साम्प्रदायिक शक्तियों की मुख़बिरी, ग़ददारी, मक्कारी, माफ़ी, गांधी का क़त्ल देखा था और मुसलमानों को जंग ए आज़ादी मे अपना ख़ून बहाते देखा था तो उन्होने इन् साम्प्रदायिक शक्तियों को नकार दिया , एक वजह यह भी थी कि उस वक़्त ज़्यादातर हिन्दू अमनपसंद और सैक्युलर थे ,
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अब साम्प्रदायिक ताक़तें परेशान थीं कि सत्ता कैसे हथियाये जाये ? धर्म के आधार पर वो नकारे जा चुके थे, मुसलमान तो बहुत कम थे, कमज़ोर भी, लेकिन मुसलमानों की ढाल यहां के सैक्युलर, अमनपसंद, इंसाफ़पसंद हिन्दू थे, साम्प्रदायिक शक्तियों की फ़िक्र थी कि कैसे मुसलमानों से सैक्युलर हिन्दू को अलग किया जाये ?
फिर एक वक़्त आया जब इनके गुरू ईज़राइल ने इन्हे एक नया पैंतरा सिखाया कि मुसलमान मुल्क से ज़्यादा धर्म को महत्व देते हैं और धर्म के आधार पर वो अपने मुल्क से ज़्यादा दूसरे मुल्क के मुसलमानों को ही अहमियत देते हैं, अमेरिका खाड़ी का तेल हथियाने के लिए इस्लामी आतंकवाद का हव्वा खड़ा कर चुका था , इसी इस्लामी आतंकवाद का हव्वा साम्प्रदायिक ताक़तों ने हिन्दुस्तान मे भी खड़ा किया और बहुसंख्यको को बहकाया कि मुसलमान सिर्फ धर्म को मानता है और इनका धर्म आतंकवाद का जनक है, गवाही के तौर पर अमेरिका का प्रोपेगंडा था ही,
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इस जाल मे बहुसंख्यक फंस गया यानि साम्प्रदायिक ताक़तों का यह पैंतरा कामयाब हो गया, इस पैंतरे को बिलकुल सही साबित करने के लिए मुसलमानों की आस्था के ख़िलाफ़ देशभक्ति के नारे तैयार किये गये, मुसलमानों तो उन नारों का इनकार इसलिए करता रहा कि वो उसकी आस्था एकेश्वरवाद के ख़िलाफ़ था जबकि साम्प्रदायिक ताक़तों ने समझाया कि देखो मुसलमान मुल्क से मुहब्बत नही करता इसलिए ये नारे नही लगाता, हालांकि वो नारे तैयार ही इसलिए किये गये थे कि मुसलमान इनकार करे, साम्प्रदायिक मानसिकता के पुलिस अधिकारियों से ‘ इंडियन मुजाहिद्दीन ‘ नाम का फ़र्ज़ी आतंकवादी संगठन तैयार कराया, उसके नाम पर गिरफ़्तारी हुई, शहर दहलाने की साजिश नाकाम हुईं, समझौता एक्सप्रेस, मालेगांव, अजमेर दरगाह मे धमाके कोई और कर रहा था, गिरफ़्तारी मुस्लिम नौजवानो की हो रही थी,
मुसलमानों के ख़िलाफ़ मुल्क मे ग़ुस्सा और नफ़रत पनपती रही, पाकिस्तान की हरकतों और कश्मीर समस्या ने नफ़रत की इस आग मे घी का काम किया, साम्प्रदायिक शक्तियों का एक काम पूरा हो चुका था कि मुसलमानों के ख़िलाफ़ जितनी नफ़रत वो चाहते थे उससे ज़्यादा पनप चुकी थी,
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अब उन्हे बस इतना यक़ीन दिलीना था कि हमारे अलावा सब मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति करते हैं इसलिए वो इस्लामी आतंकवाद के ख़तरे से मुल्क को नही बचा सकतीं, मुसलमानों को सिर्फ़ सिर्फ हम रोक सकते हैं क्योंकि न हमे इनकी वोट चाहिए न इन पर हम कोई रियायत करेंगे बल्कि हम इनका क्या हाल करेंगे वो गुजरात मे करके दिखा दिया, अब इनके दोनो काम पूरे हो चुके हैं , .
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मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत और बहुसंख्यको का यक़ीन, दोनो इनके पास हैं, नतीजा सबके सामने है

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