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मुसलमानों के कंधों पर मंदिर के पुजारी रमेश माथुर का जनाजा, यही है इस्लाम
एक तरफ कुछ लोग चाहते हैं कि महामारी के दौरान सब्जियां भी हिंदू-मुसलमान हो जाएं, लेकिन इंसानियत का तकाजा है कि पुजारी जी मुसलमानों के कंधों पर अंतिम यात्रा पूरी करें.
मेरठ की कायस्थ धर्मशाला में मंदिर के पुजारी रमेश माथुर की लॉकडाउन के दौरान मौत हो गई. रमेश धर्मशाला के पुजारी थे और पत्नी के साथ वहीं रहते हैं. घर में सिर्फ एक बेटा और पत्नी मौजूद थे. ज्यादातर परिवार और रिश्तेदार सब दूसरे शहरों में हैं. आसपास की बस्ती में मुस्लिम ज्यादा हैं. पुजारी जी की मौत होने पर रोना धोना सुनकर अकील मियां पहुंचे. फिर पूरा मोहल्ला इकट्ठा हो गया और सब लोग लग कए पुजारी के परिवार को संभालने में.
अकील मियां, हिफ्जुर्रहमान ने मिलकर दाह संस्कार का सामान मंगवाया. महमूद अंसारी, अनवर, अल्लू, दानिश सैफी और कई अन्य लोगों ने मिलकर अर्थी तैयार करवाई. इन लोगों ने कंधा दिया और राम नाम सत्य है… के साथ उन्हें श्मशान तक ले गए. पुजारी जी की अंतिम यात्रा संपन्न हुई.
पुजारी के बेटे का कहना है कि हम सब लोग परिवार जैसे हैं. सभी लोग बिना बुलाए आगे आए और हमारी मदद की.
कोरोना तमाम संकट के साथ यह सबक भी लाया है कि इंसानियत, मजहबी पागलपन से बड़ी है. जो लोग समाज के बंटवारे का अभियान चला रहे हैं, उनसे कह दो कि हम आपस में लड़ने और बंटने से इनकार करते हैं.