मुख्यधारा की राजनित करने वाले सभी लोग नालायक नहीं होते, ना ही राजनैतिक लाभ के लिए नब्बे बरस की बूढ़ी मां को एटीएम के बाहर लाइन में खड़ा करवाते है।
कई ऐसे भी है जो अपनी बीवी को छोड़कर भागने के बजाए पारिवारिक जिम्मेदारियां निभाते है, खुद की ज़िंदगी जीते है, रोजमर्रा की जरूरतों को परखते है, परिवार के साथ-साथ देश भी चलाते है और बेहतरीन काम करते है।
राहुल गांधी यदि सोनिया जी के ईलाज के सिलसिले में विदेश चले जाते है, गोदी मिडिया के साथ-साथ बेहया भक्तों का झुंड उनपर टूट पड़ता है। तेजस्वी अपने बीमार पिता, आदरणीय लालू जी को समय देने के लिए दिल्ली रुक जाते है, बिहार की सियासत डोलने लगती हैं। व्यक्तिगत लांक्षण और आरोपों का दौर शुरू हो जाता है।
कमजोर से सवाल करना बहादुरी नहीं है, कमजोर के लिए सवाल करना बहादुरी है। विपक्ष को ढूंढना अच्छी बात है लेकिन अंहकारी सत्ता का कॉलर पकड़ कर खींचना भी हमारा संवैधानिक अधिकार है। फिलहाल बिहार को तेजस्वी की उतनी जरूरत नहीं है, जितनी उनके पिता को है.!
उन्हें पुत्रधर्म निभा लेने दीजिए.. समय आने पर वो खुद राजधर्म निभा लेंगे।