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भारत के लिए मुगल काल स्वर्ण काल था, ना कि अमृत काल – M. S. Zaman
1973 मे पंडित सुन्दरलाल लिखते हैं, कि जब चीन ने अक्साई चीन मे अपना सैन्य अड्डा बनाया तो दोनो प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू (1947-64) और प्रधानमंत्री चाउ एन लाई (1949-76) अपने महत्वपूर्ण सरकारी प्रतिनिधियों के साथ मिल कर बैठक कर मसला हल करना चाहा, 50 वर्गमील विवादास्पद इलाक़ा जिस मे 18 हजार वर्गमील मैकमोहन रेखा के दक्षिण का अंश भारतीय प्रशासन के हाथ में था और मैकमोहन रेखा के उत्तर को अक्साई चीन कहा जाता है, वह चीन कब्जा कर चूका था।
20 हजार वर्गमील को दोनों पक्षों के प्रतिनिधियों ने बैठक में अपना कहा। भारत के प्रतिनिधि ने कहा कि 1827 में, हमारे सरकार का एक तहसीलदार वहां गया था, और इस-इस बाजार और इस-इस इलाके से टैक्स वसूला था। चीन के एक प्रतिनिधि ने कहा कि 1904 में, उन के एक अमीन ने इस-इस जगह की नाप करवाई थी।
तीन दिनों तक मांगे रखी जाती रहीं, चौथे दिन प्रधानमंत्री चाउ एन लाई ने कहा कि कोई दीवानी अदालत भी इस तरह के झमेले का फैसला नहीं कर पायेगी। इसलिए उनका यह प्रस्ताव हुआ कि इस विषय को लेकर दोनों देशों को मित्रतापूर्वक विचार-विमर्श कर हल करे ।
हमारे आदरणीय विश्व प्रख्यात दार्शनिक, इतिहास वेत्ता, भाषा विद, धारा प्रवाह हिन्दी वाचक डाक्टर मोहन जी कहते हैं कि हजारो साल से विदेशी भारत आते रहे और हमें पादोभ्रांत करते रहे । मगर यह नही बोलते हैं कि हजारो साल से विदेशी आये जैसे मुग़ल साम्राज्य या दुरार्नी साम्राज्य ने हमें “अखण्ड भारत” दिया जिस का #पंडित_सुन्दरलाल ने चीन को 1827 मे भारत का अंग बताया।
जब तक भारत मे मुग़ल रहे चीन की चिंग राजवंश (Qing Dynasty) ने अंग्रेजो को चीनी बंदरगाह पर आयात-निर्यात का इजाजत नही दिया। जब भारत मे अंग्रेजी हकूमत स्थापित हो गई उस के बाद चिंग सरकार ने ब्रिटेन को 1857 मे कई बंदरगाह पर सामान लाने का अनुबंध किया, और भारत से #अफ़ीम (Opium) लाकर चिंग सरकार को बेचने की इजाजत दिया। चिंग सरकार अफ़ीम पर टैक्स लगा कर बेचना वैध (legalise) कर दिया। चीन मे भी लोगो को अफ़ीम की खेती की इजाजत दे दिया, और भारी मात्रा मे टैक्स वसूला, औऱ इस तरह से चीन भी विदेश मे अफीम बेचने लगा।
चिंग सरकार ने उसी अफीम के टैक्स से अपनी आधुनिक सेना तथा नौसेना बनाई और चीन का उत्तरी भाग को लड कर कब्जा किया।मगर चिंग सरकार के अधिकारियों के चोरी और घोटाला के कारण चिंग राजवंश 1912 मे ख़त्म हो गया।
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