बेटे ने ठुकराया, मुस्लिमों ने किया हिंदू बुजुर्ग का अंतिम संस्कार

SD24 News Network Network : Box of Knowledge
SD24 News Network
बेटे ने ठुकराया, मुस्लिमों ने बुजुर्ग क्षीरसागर की हिंदू तरीके से किया अंतिम संस्कार
पुणे में एक बुजुर्ग दंपति रहते थे. बुजुर्ग शेकू क्षीरसागर 75 साल के थे. बीमार भी थे. ईद के रोज उनकी मौत हो गई. उनके परिवार के अन्य सदस्य नागपुर में थे. लॉकडाउन में नहीं आ सकते थे.



पड़ोसी मुसलमानों ने मौके की नजाकत को समझा. रहीम शेख, जान मुहम्मद पठान, अप्पा शेख, आसिफ शेख, सद्दाम शेख, अल्ताप शेख ने पहले ईद की नमाज अदा की और फिर साहबराव जगताप के साथ मिलकर अस्पताल गए. वहां से बुजुर्ग का शव लेकर आए. पूरा इंतजाम किया गया. विधि विधान से ‘राम नाम सत्य है’ के साथ शव श्मशान पहुंचा और हिंदू रिवाज से अंतिम संस्कार किया गया.
रहीम शेख ने बताया, “इनके परिवार के सदस्य रोजी-रोटी के लिए शहर से बाहर रहते हैं. हम भी इनके बेटे की उम्र के हैं. हमने यह फर्ज निभाते हुए इनका अंतिम संस्कार किया. आज ईद है और अल्लाह की ओर से यह संदेश दिया गया है कि बुरे वक्त में किसी की मदद करना सबसे बड़ी इबादत है.”



इसी तरह, महाराष्ट्र के अकोला में एक और बुजुर्ग की कोरोना से मौत हो गई. वैसे वे अमीर घराने के थे, लेकिन इंसानियत का अमीरी से कोई लेना देना तो है नहीं. उनकी मौत के बाद प्रशासन ने शव ले जाने को कहा लेकिन परिवार का कोई नहीं आया. मौत हुए 24 घंटे से ज्यादा बीत गए. घरवाले शव नहीं ले गए.
नगर निगम ने परिवार से संपर्क किया और कहा कि अंतिम संस्कार के लिए सुरक्षा किट दी जाएगी. फिर भी परिजन नहीं आए. नगर निगम के सामने सवाल खड़ा हुआ कि बुजुर्ग के शव का अंतिम संस्कार कौन करेगा.



अकोला के कच्ची मेमन जमात ट्रस्ट के जावेद जकेरिया आगे आए. अपने कार्यकर्ताओं के साथ बुजुर्ग का हिंदू रीति रिवाज से अंतिम संस्कार कराया. अकोला के मोहता मिल श्मशान भूमि में बुजुर्ग शख्स को मुखाग्नि दी गई.
हेल्थ ऑफिसर प्रशांत राजुरकर ने बताया, ‘जब बुजुर्ग के परिवार ने उनका शव लेने इनकार कर दिया तो म्युनिसिपल कारपोरेशन को सहयोग करने वाली अकोला की कच्ची जमात ट्रस्ट के जावेद जकरिया और उनके सहयोगियों ने ये बीड़ा उठाया. उन्होंने बुजुर्ग को हिंदू रीति रिवाज से मुखाग्नि दी. यह जमात अब तक कोविड-19 के 20 शवों अंतिम संस्कार किया है.



दुनिया में जब जब तबाहियां गुजरी हैं, उसके बाद इंसानियत हमेशा मजबूत हुई है. कोरोना चला जाएगा, तब हम लोग याद रखेंगे कि कैसे तमाम भारतीय मुसलमान युवकों ने अपना इंसानियत का फर्ज निभाया था.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *