कोरोना महामारी के चलते इस समय पूरे देश में हाहाकार मचा हुआ है। महामारी की चपेट में आए लोगों को अस्पतालों में जगह नहीं मिल रही है। आपदा को अवसर मानते हुए तमाम निजी अस्पताल लूट के अड्डे बने हुए हैं। बाजार में जरूरी दवाएं और इंजेक्शन उपलब्ध नहीं हैं और उनकी कालाबाजारी जोरों पर हो रही है। ऑक्सीजन जैसी वस्तु, जिसका भारत में पर्याप्त मात्रा में उत्पादन होता है लेकिन इस समय हमें छोटे-छोटे देशों से आयात करनी पड रही है।
इलाज, दवा, इंजेक्शन और ऑक्सीजन के अभाव में रोजाना हजारों लोग असमय ही मौत का शिकार हो रहे हैं। श्मशानों में अंतिम संस्कार के लिए शवों की लंबी-लंबी कतारें लगी हुई हैं। अंतिम संस्कार में लगने वाली वस्तुओं के दाम अचानक आसमान छूने लगे हैं। यानी महामारी की चपेट में आ गए तो उससे निजात पाना भी बेहद महंगा और निजात नहीं मिलने पर मरना भी कम महंगा नहीं। हालत यह हो गई है कि किसी को अपने परिजनों के शवों का अंतिम संस्कार करने के लिए जगह नहीं मिल रही है तो किसी के पास अंतिम संस्कार के लिए पैसे नहीं है, लिहाजा वे नदियों में लाशें बहा रहे हैं।
कोरोना संक्रमण की रोकथाम के लिए देश में चार महीने पहले उत्सवी माहौल में शुरू हुआ वैक्सीनेशन अभियान इस समय वैक्सीन के अभाव में ठप पडा हुआ है। किसी को नहीं मालूम कि यह अभियान फिर से कब शुरू होगा, यहां तक कि सरकार को भी नहीं मालूम। संक्रमण को फैलने से रोकने के नाम पर देश के अधिकांश हिस्से लॉकडाउन और कोरोना कर्फ्यू के नाम पर पुलिस स्टेट में तब्दील हो चुके हैं। यानी पुलिस के लिए यह महामारी और उससे मची अफरातफरी भी कानून व्यवस्था का मामला भर है और इसीलिए वह इलाज के लिए अस्पतालों में जगह और बाजार में दवाइयों की तलाश में भटक रहे या घरेलू जरूरत का सामान लेने के लिए घरों से निकले लोगों पर भी हमेशा की तरह डंडे और गालियां बरसा रही हैं।
देश के इस दर्दनाक और शर्मनाक सूरत-ए-हाल के बावजूद देश की सत्ता व्यवस्था को न तो जरा भी शर्म आ रही और न ही देश की जनता पर रहम। बेशर्मी की पराकाष्ठा यह है कि सरकार यह बात मानने के लिए कतई तैयार नहीं है कि वह इस महामारी से निबटने में लगातार अक्षम साबित हुई है। उसकी संवेदनहीनता का चरम यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आगामी 30 मई रविवार को मन की बात कार्यक्रम के तहत देशवासियों से सकारात्मकता का जश्न मनाने को कहेंगे। इस सिलसिले में उन्होंने लोगों से ऐसी कहानी-किस्से भी मंगवाए हैं जो लोगों को प्रेरित कर सके। कहा जा सकता है कि बर्बादियों का जश्न मनाने में इस सरकार का कोई जवाब नहीं।
वैसे भी मौजूदा सरकार की यह खासियत है कि वह किसी भी मामले में अपनी गलती और नाकामी को कभी कुबूल नहीं करती। प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी इसी महीने अपने कार्यकाल के सात वर्ष पूरे करने जा रहे हैं। इन सात वर्षो के दौरान उनकी सरकार कई मोर्चों पर असफल रही है लेकिन उसने हमेशा गलत-सलत आंकडों और मनगढंत तथ्यों के जरिए अपनी तमाम असफलताओं को भी सफलता के रूप में प्रस्तुत किया है।
यही नहीं, उसने अपनी कई गलतियों और नाकामियों के पिछली सरकारों और यहां तक कि देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को जिम्मेदार ठहराने से भी गूरेज नहीं किया। उसके इस काम में मीडिया के एक बडे हिस्से ने भी उसकी खासी मदद की है। मामला चाहे नोटबंदी और जीएसटी लागू करने से अर्थव्यवस्था तबाह होने का या भारतीय सीमा में चीनी घुसपैठ का या फिर पुलवामा जैसे भीषण आतंकवादी हमले का, किसी भी मामले में सरकार ने अपनी गलती या नाकामी को कुबूल नहीं किया है। एक साल पहले शुरू हुई कोरोना महामारी को लेकर भी सरकार लगातार ऐसा ही कर रही है।
दरअसल इस महामारी को इस सरकार ने कभी भी गंभीरता से लिया ही नहीं। पिछले साल की शुरुआत में जब इस महामारी ने भारत में दस्तक देना शुरू कर दी थी और तमाम विशेषज्ञ इसकी गंभीरता को लेकर सरकार को आगाह कर रहे थे, तब पूरी सरकार उनकी चेतावनियों और सलाहों को नजरअंदाज कर नमस्ते ट्रंप जैसी खर्चीली तमाशेबाजी में मशगूल थी। वह अंतरराष्ट्रीय तमाशा भी भारत में कोरोना संक्रमण बढाने में एक महत्वपूर्ण कारक साबित हुआ था।
अमेरिकी राष्ट्रपति के खैरमकदम से मकदम से फारिग होने के बाद भी सरकार इस महामारी को लेकर नहीं चेती और विपक्षी राज्य सरकारों के गिराने के अपने मनपसंद खेल में जुट गई थी। बाद में जब संक्रमण तेजी से बढने लगा तो प्रधानमंत्री ने विशेषज्ञों और राज्य सरकारों से सलाह-मशविरा किए बगैर ही आनन-फानन में देशव्यापी संपूर्ण लॉकडाउन का ऐलान कर दिया।
लॉकडाउन के लागू होने के बाद तो यह महामारी सरकार के लिए विन-विन गेम यानी हर तरह से फायदे का सौदा हो गई। उसके दोनों हाथों में लड्डू आ गए। अगर संक्रमण के मामलों में कमी आने लगे तो अपनी पीठ ठोंकी कि सरकार बहुत मुश्तैद होकर काम कर रही है। मीडिया के एक बडे हिस्से ने भी कूल्हें मटकाते हुए सरकार की शान में मुजरा किया- ”प्रधानमंत्री मोदी ने देश को बचा लिया’’, ”मोदी की दूरदर्शिता का लोहा दुनिया ने भी माना’’… आदि आदि। ताली-थाली और दीया-मोमबत्ती, आतिशबाजी आदि के उत्सवी आयोजनों को भी कोरोना नियंत्रण का श्रेय दिया गया। प्रधानमंत्री मोदी तो अक्सर कहते ही रहे हैं कि कोरोना के खिलाफ वैश्विक लडाई में भारत नेतृत्वकारी भूमिका निभा रहा है।
इसके विपरीत अगर संक्रमण जरा सा भी तेजी से बढता दिखा तो उसका सारा दोष मीडिया के माध्यम से जनता के मत्थे मढ दिया कि लोग मास्क नहीं पहन रहे हैं, सेनेटाइजर का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं, शारीरिक दूरी का पालन नहीं कर रहे हैं, पारिवारिक और सामाजिक आयोजनों में भी कोविड प्रोटोकॉल का पालन नहीं हो रहा है।
इसी कोरोना महामारी के शुरुआती दौर में सरकार और सत्तारुढ पार्टी ने कॉरपोरेट मीडिया और सोशल मीडिया के जरिए सांप्रदायिक नफरत फैलाने का अपना एजेंडा भी खूब चलाया। तब्लीगी जमात के बहाने एक पूरे मुस्लिम समुदाय को कोरोना फैलाने का जिम्मेदार ठहराया। सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर सुनियोजित तरीके से चलाए गए इस नफरत अभियान की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तीखी आलोचना भी हुई। बाद में विभिन्न अदालतों ने कोरोना फैलाने के आरोप में गिरफ्तार किए गए तब्लीगी जमात के तमाम लोगों को बरी करते हुए सरकार और मीडिया की भूमिका की कडी आलोचना भी की, लेकिन सरकार और मीडिया की सेहत पर कोई असर नहीं हुआ।
अब एक साल बाद जब कोरोना संक्रमण का कहर पहले से भी कहीं ज्यादा भयावह रूप में जारी है और देश में राष्ट्रीय स्तर पर भय, दुख, पीडा, आशंका, निराशा और अवसाद का माहौल है। इस स्थिति से निबटने में सरकार की नाकामी चर्चा दुनिया भर में हो रही है। कई देशों ने अपने नागरिकों के भारत जाने और भारत से अपने यहां आने वाली उडानों पर रोक लगा दी है। दुनिया के कई छोटे-बडे देश दवाइयों और ऑक्सीजन की आपूर्ति के मामले में भारत की मदद करने के लिए आगे आ रहे हैं। देश की विभिन्न अदालतें सरकार की नाकामी और अक्षमता को रेखांकित करते हुए कडी टिप्पणियां कर चुकी हैं।
सवाल यही है कि ऐसी दारुण और अंतरराष्ट्रीय शर्म की स्थिति में प्रधानमंत्री किस सकारात्मकता और किस तरह के जश्न की बात लोगों से करने वाले हैं? जाहिर है कि प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार के हिसाब से देश में जो कुछ भी हो रहा है वह असामान्य नहीं है। उनकी पार्टी के तमाम नेता और सरकार के मंत्री पूरी बेशर्मी के साथ कह रहे हैं कि अभी तो कम तबाही हुई है, अगर मोदी जी नहीं होते तो करोडो लोग मारे जाते। यह पूरी स्थिति यही बताती है कि देश पर आए इस अभूतपूर्व संकट के दौर में भारी बहुमत से निर्वाचित सरकार पूरी जनता से न सिर्फ कट चुकी है बल्कि पूरी तरह जनद्रोही हो चुकी है।